जिंदगी पर आधारित कविता-पुष्प क्रमांक98-तुम दूर ही सही तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज

Started by Atul Kaviraje, December 05, 2022, 09:22:49 PM

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Atul Kaviraje

                               "जिंदगी पर आधारित कविता"
                                      पुष्प क्रमांक-98
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ जिंदगी पर आधारित दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-98. इस कविता का शीर्षक है- "तुम दूर ही सही तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज"

     अगर आप भी इंटरनेट पर ढूंढ़ रहे थे लोकप्रिय हिंदी कविताएं तो बिल्कुल सही जगह पर हैं। हम लेकर आए हैं खास आपके लिए जिंदगी पर आधारित 35+ बेहतरीन कविताएं हिंदी में। इन कविताओं में कवि ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से जीवन का वर्णन किया है। इनमें आपको जीवन के शुरू होने से लेकर खत्म होने तक, जीवन में आने वाले सभी पड़ावों ( सुख-दुःख, प्यार-मोहब्बत, दर्द, परेशानी ) के बारे में बखूबी बताया गया है।

     दोस्तों आपको तो पता ही है आजकल की दुनिया में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपनी ज़िन्दगी को सही ढंग से नही जी पा रहे और हमेशा उलझनों में घिरे रहना, छोटी छोटी बातों पर परेशान होना, हमेशा काम में बिज़ी रहना जैसे काम ही उनकी ज़िन्दगी में रह गया है। उन्हें पता ही नहीं जीवन का मतलब क्या होता है। यहां पर कवि ने इन कविताओं के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया है कि जिंदगी का सही मतलब क्या है। आपको इन कविताओं से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा जो आपकी ज़िन्दगी बदल देंगी।अभी पढ़ना शुरू कीजिए इस पोस्ट( hindi poems on life ) को और सुखमय जीवन का आनंद लीजिए और अपने मित्रों और परिवार वालों को भी सुनाईए उन्हें भी यह poetry जरूर पसंद आएगी।

ज़िन्दगी पर कविताएँ : तुम दूर ही सही तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज--
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                         "तुम दूर ही सही तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज"
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तुम दूर ही सही तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज,
तेरे शहर में सूरज चाँद सा चमकता हूँ मैं हर रोज!!
बड़े शिद्त से जीने लगा हूँ मैं तुझमें रात दिन,
तुझे पता ही नहीं तेरे सांसो मे महकने लगा हूँ मैं हर रोज!!
तुम दूर ही सही....

तुम बेबाक हंसकर गुजर जाते हो दिल से मेरे,
बहुत देर तक खोजता दिल तुमको दिल से मेरे!!
तुम्हें पाने की ख़ुशी में यादों से दूर निकल जाता हूँ,
कम्बख्त दिल ही तो है तेरी गली से गुजर जाता हूँ मैं!!
तेरी जिंदगी गीतो सी बनकर उतर गयी यहाँ,
तेरे दर्द को सरगम से पिरोकर गीत गाता हूँ मैं हर रोज!!
तुम दूर ही सही....

हर शक्स से मुस्करा कर न मिला करो यहाँ,
"आदमी"हो आदमी सा रहा करो यहाँ!!
तेरी चंचल सी हँसी से परेशान है ये शहर,
तू सूरज सा उगती है चाँद सा ढलता हूँ मैं हर रोज,
तेरी सलामती की दुआ करता हूँ मैं हर रोज!!
तू दूर ही सही.. पर तुमसे मिलता हूँ मैं हर रोज!!

– मीठठू
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.12.2022-सोमवार.