साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-103-आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान

Started by Atul Kaviraje, December 10, 2022, 09:14:50 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यिक निबंध"
                                   निबंध क्रमांक-103
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान"
   
                         आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान--
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     भारत के पत्रकार मूलतः जनता का प्रतिनिधि मानकर पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे। यदि सही ढंग से आँका जाए तो स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि पत्रों एवं पत्रकों ने ही तैयार की, जो आगे चलकर राजनेताओं एवं स्वतंत्रता संग्रामियों को पहले पत्रकार बनने के लिए प्रेरित किया। पं, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद आदि सभी पत्रकारिता से संबद्ध रहे।

     कांग्रेस भी जब दो विचारों में विभाजित हुई, उस समय भी गरम दल का दिशा-निर्देश 'भारतमित्र', अभ्युदय', 'प्रताप', 'नृसिंह', केशरी एवं रणभेरी आदि पत्रों ने किया तथा नरम दल का 'बिहार बंधु', 'नागरीनिरंद', 'मतवाला', 'हिमालय' एवं 'जागरण' ने किया। पत्रकारों के संघर्ष का युग भारतेंदु युग मात्र साहित्यिक युग ही नहीं, अपितु स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय जागरण का युगबोध करानेवाला युगदृष्टा का युग था। महात्मा गांधी के लिए यही प्रेरक युग कहा जाना पत्रकारिता का शाश्वत सत्य होगा। स्वतंत्रता आंदोलन के लिए राजनेताओं को जितना संघर्ष करना पड़ा, उससे तनिक भी कम संघर्ष पत्रों एवं पत्रकारों को नहीं करना पड़ा। बुद्धिजीवी, ऋषियों की मौन साधना, तपस्या और त्याग इतिहास की धरोहर है, जिसे मात्र साहित्य तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि स्वतंत्रता की बलिवेदी पर आहूति करनेवालों को शृंखलाबद्ध समूह के रूप में भी माना जाना चाहिए।

     तकनीकी रूप में प्रारंभिक पत्रकार स्वयं रिपोर्टर, लेखक, लिपिक, प्रूफरीडर, पैकर, प्रिंटर, संपादक एवं वितरक भी थे। क्रूरता, अन्याय, क्षोभ, विरोध, क्लेश, संज्ञास एवं गतिरोध उनकी दिनचर्या थी, फिर भी वे अटल थे, अडिग थे, क्योंकि उनके समक्ष एक लक्ष्य था। वे देशभक्त थे। देशभक्त के समक्ष सभी अवरोधों, प्रतिरोधों एवं बाधक विचारों का खंडन उनका उद्देश्य था। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीतियों के समक्ष सरकारी सहायता कौन कहे, साधारण सहिष्णुता भी उपलब्ध नहीं, जो आज सर्वत्र दृष्टव्य है। भले ही इनकी दिशाविहीनता के कारण उन आदर्शों के निकट नहीं है। उस समय न नियमित पाठक थे, न नियमित प्रेस अथवा प्रकाशन। मुद्रण के लिए दूसरे प्रेसों के समक्ष हाथ-पाँव जोड़कर चिरौरी करनी पड़ती थी, ताकि कुछ अंक निकल पाएँ। ग्राहकों और पाठकों की स्थिति यह थी कि महीनों-महीना पत्र मँगाते थे और पैसा माँगने पर वे वापस कर देते थे। ऐसी स्थिति में प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रार्थना, तगादा, चेतावनी औऱ धमकियों के लिए कतिपय शीर्षकों में प्रकाशन होता था- जैसे 'इसे भी पढ़ लें' विज्ञापन एवं सूचना के रूप में आदि-आदि।

                      उदंड मार्तंड से शुरुआत

     निःसंदेह हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र 'उदंड मार्तंड' ३०.०५.१८२६ को कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था, जिसके संचालक पं. युगल किशोर थे एवं सन १८९१ को गोरखपुर से मुद्रित 'विद्याधर्म दीपिका' भारत वर्ष की सर्वप्रथम निःशुल्क पत्रिका थी, किंतु आंग्ल महाप्रभुवों के प्रभाव में चल रहे पाठकों के अभाव में यह पत्रिका भी अनियमित होते-होते काल-कवलित हो गई।

     भारत वर्ष की पत्रकारिता इसी पृष्ठभूमि में १८वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अंकुरित हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थापनोपरांत कई स्वतंत्र व्यापारी भी यहाँ प्रवेश पा चुके थे। ये व्यापारी भारतीय जन जीवन के साथ अपनत्व स्थापित कर स्वतंत्र पत्र-पत्रिका निकालने को तत्पर हुए। विलियम बोल्टस प्रथम व्यापारी था जिसने १७६४ में प्रथम विज्ञापन प्रसारित किया कि 'कंपनी शासकों की गतिविधियों से जन सामान्य को अवगत कराने के लिए वह पत्र निकालना चाहता है। कंपनी इस विज्ञापन को पढ़ते ही उसे देश निर्वासित कर इंग्लैंड वापस भेज दिया। अंग्रेज़ों का पत्र, पत्रिकाओं, पत्रकारों एवं पत्रकारिता के खिलाफ़ दमन का श्रीगणेश यहीं से प्रारंभ हुआ, किंतु वोल्टस द्वारा लगाया हुआ बीज अंकुरित होकर अगस्टस हिकी के हाथों में आकर एक पत्र के रूप में प्रस्फुटित हो गया जिसका नाम पड़ा 'बंगाल गजट एंड कलकत्ता जनरल एडवर टाइज़र' जिसने 'हिकीगजट' के नाम से १७८० में प्रथम पत्र के रूप में जन्म लिया। वारेन हेस्टिंग्स उस समय भारत वर्ष का गवर्नर जनरल था, जो अपने अथवा अपने मंत्रिमंडल के प्रतिकूल एक साधारण आलोचना भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। हिकीगजट इसका कटु आलोचक बन गया और फलस्वरूप १४-११-१७८० को प्रथम दमनात्मक प्रहार के रूप में इस पत्रिका को जो डाक से भेजने की सुविधा प्राप्त थी, उसे छीन ली गई। आलोचना तीव्रतर बढ़ती गई, जिसके चलते जेम्स अगस्टस को कारागार में डाल दिया गया और अंततः उसे देश से निर्वासित कर दिया गया। इसी शृंखला में एक दूसरे पत्रकार विलियम हुआनी को भी निर्वासित किया गया। अन्य प्रदेशों से भी जो पत्र निकलते थे उनके लिए सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य किया गया। मद्रास से 'इंफ्रेस' ने बिना लाइसेंस प्राप्त किए 'इंडिया हेराल्ड' निकालना प्रारंभ कर दिया। इसके लिए इनको कानूनी कार्रवाई के तहत गिरफ्तार किया गया और अंत में इन्हें भी निर्वासित कर इंग्लैंड भेज दिया गया।

--डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव
(१० अगस्त २००९)
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                     (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.12.2022-शनिवार.