साहित्यशिल्पी-आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख] –क्रमांक-१-ब-

Started by Atul Kaviraje, December 10, 2022, 09:30:06 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख]" 

                 आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख] –क्रमांक-१--ब-- 
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     यह तो स्पष्ट है कि रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेगों, कषायों आदि का बहुत बड़ा संबंध है। शारीरिक स्वास्थ्य और बीमारी, मन का संतुलन और असंतुलन, आवेगों में कमी और वृद्धि-ये सब इन प्रयत्नों पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार हम रंगों से अलगाव या संश्लेषण करते हैं। उदाहरणतः नीला रंग शरीर में कम होता है, तो क्रोध अधिक आता है, नीले रंग के ध्यान से इसकी पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय बन जाते हैं। ज्योतिकेंद्र पर श्वेत रंग, दर्शन-केंद्र पर लाल रंग और ज्ञान-केंद्र पर पीले रंग का ध्यान करने से क्रमशः शांति, सक्रियता और ज्ञानतंतु की सक्रियता उपलब्ध होती है। होली के ध्यान में शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न रंगों का ध्यान कराया जाता है और इस तरह रंगों के ध्यान में गहराई से उतरकर हम विभिन्न रंगों से रंगे हुए लगने लगा।

     लेश्या ध्यान रंगों का ध्यान है। इसमें हम निश्चित रंग को निश्चित चैतन्य-केंद्र पर देखने का प्रयत्न करते हैं। रंगों का साक्षात्कार करने के लिए विविध रंगों की जानकारी आवश्यक है। रंगों के हमें दो भेद करने होंगे-चमकते हुए ;ठतपहीजद्ध यानी प्रकाश के रंग और अंधे ;क्नससद्ध यानी अंधकार के रंग। अंधकार का काला, नीला और कापोत रंग अप्रशस्त है। किंतु प्रकाश का काला, नीला और कापोत रंग अप्रशस्त नहीं है। इसी प्रकार अंधकार का लाल, पीला और श्वेत रंग प्रशस्त नहीं है और प्रकाश का लाल, पीला और श्वेत रंग प्रशस्त है। ध्यान में जिन रंगों को हमें देखना है, वे प्रकाश के यानी चमकते हुए होने चाहिए, अंधकार के यानी अंधे नहीं। आचार्य श्री महाप्रज्ञ इसे अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जब व्यक्ति का चरित्र शुद्ध होता है तब उसका संकल्प अपने आप फलित होता है। चरित्र की शुद्धि के आधार पर संकल्प की क्षमता जागती है। जिसका संकल्प-बल जाग जाता है उसकी कोई भी कामना अधूरी नहीं रहती। संकल्प लेश्याओं को प्रभावित करतेे हैं। लेश्या का बहुत बड़ा सूत्र है-चरित्र। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या ओर शुक्ललेश्या-ये तीन उज्ज्वल लेश्याएँ हैं। इनके रंग चमकीले होते हैं। कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या-ये तीन अशुद्ध लेश्याएँ हैं। इनके रंग अंधकार के रंग होते हैं। वे विकृत भाव पैदा करते हैं। वे रंग हमारे आभामंडल को धूमिल बनाते हैं। चमकते रंग आभामंडल में निर्मलता और उज्ज्वलता लाते हैं। वे आभामंडल की क्षमता बढ़ाते हैं। उनकी जो विद्युत-चुंबकीय रश्मियाँ हैं वे बहुत शक्तिशाली बन जाती हैं।

प्रेषकः-(ललित गर्ग)
पटपड़गंज, दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.12.2022-शनिवार.