साहित्यशिल्पी-आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख] –क्रमांक-2-

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2022, 09:27:50 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख]" 

                 आध्यात्मिक रंगों से खेले होली [आलेख] –क्रमांक-2-- 
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     आध्यात्मिक रंगों से खेले होली - ललित गर्ग:-

     होली के लिए विशेष तौर से तैयार किए इस विशेष ध्यान उपक्रम में प्रत्येक रंग का ध्यान में साक्षात्कार करने के लिए संकल्प-शक्ति का प्रयोग करवाया जाता है। संकल्प-शक्ति का अर्थ है-कल्पना करना अर्थात् मानसिक चक्षु से इसे स्पष्ट रूप से देखना। यह इस पद्धति का मूल आधार है। कल्पना जितनी अधिक देर टिकेगी और जितनी सघन होगी, उतनी ही सफलता मिलेगी। फिर उस कल्पना को भावना का रूप देना, दृढ़ निश्चय करना। जब हमारी कल्पना उठती है और वह दृढ़ निश्चय में बदल जाती है तो वह संकल्प-शक्ति बन जाती है। शुरु-शुरु कल्पना में इतनी ताकत नहीं होती, किंतु कल्पना को जब संकल्प शक्ति की पुट लगती है, उसकी ताकत बढ़ जाती है। जब कल्पना सुदृढ़ बन जाती है, तब जो रंग हम देखना चाहते हैं, वह साक्षात् दिखाई देने लग जाता है। प्रेक्षा प्राध्यापक मुनि किशनलाल कहते हैं-रंगों की कल्पना की सहायता के लिए ध्यान करने से पूर्व उस रंग को खुली आँखों से अनिमेष दृष्टि से उसी रंग के कागज या प्रकाश के द्वारा कुछ देर तक देख लेने से वह रंग आसानी से कल्पना में आ जाता है। इसके लिए व्यवहार में सेलीफीन पेपर (रंग वाले चिकने पारदर्शी कागज) का व्यवहार किया जाता है। जिसे रंग के कागज को प्रकाश को स्रोत के सामने रखा जाता है, उसी रंग का प्रकाश हमारी आँखों के सामने आता है। फिर वही रंग बंद आँखों से भी स्पष्ट दिखाई देने लग जाता है।

     रंग का साक्षात्कार करने के लिए चित्त की स्थिरता या एकाग्रता अनिवार्य है। एकाग्रता का अर्थ है-एक ही कल्पना पर स्थिर रहना, उसका ही चिंतन करते रहना। जब एकाग्रता सधती है, जब चित्त स्थिर बनता है, तब वह कल्पना के रंगों की तरंगों को अपने सूक्ष्म शरीर-तैजस शरीर की सहायता से उत्पन्न करता है। अब कल्पना समाप्त हो जाती है और वास्तविक रंगों की उत्पत्ति हो जाती है।

     असल में लेश्या ध्यान का प्रयोग चोटी पर चढ़ने जैसा है। किसी-किसी व्यक्ति को इसमें शीघ्र सफलता मिलती है, पर किसी-किसी को कुछ समय लगता है। वैसी स्थिति में व्यक्ति को न निराश होना चाहिए और न ही अपना धैर्य खोना चाहिए। दृढ़ संकल्प के साथ प्रयत्न को चालू रखना चाहिए।

     प्रत्येक व्यक्ति में अनंत शक्ति निहित है। किंतु वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं है। अपेक्षा है, अपनी शक्ति को जानने की, उससे परिचित होने की और उसमें आस्था की। लेश्या ध्यान उसका अचूक उपाय है।

     कभी-कभी जिस रंग को देखना चाहते हैं, उसके स्थान पर कोई अन्य रंग का अनुभव होने लगता है पर इससे भी निराश होने की जरूरत नहीं है। प्रत्युत किसी भी रंग का दिखना इस बात का प्रमाण है कि ध्यान सध रहा है। दूसरे रंगों का दिखना भी संकल्प-शक्ति और वर्ण-शक्ति का परिणाम है। यद्यपि यह बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है, फिर भी इसका अपना महत्त्व है, क्योंकि इससे व्यक्ति की श्रद्धा और आस्था को बल मिलता है। जब तक कोई अनुभव नहीं होता, तो ऐसा लगता है कि साधना फलीभूत नहीं हो रही है। अनुभव छोटा हो या बड़ा, वह बहुत काम का होता है।

     होली के अवसर पर आध्यात्मिक रंगों से होली खेलने की प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया निश्चित ही सुखद एवं एक अलौकिक अनुभव है। लेकिन इसके लिए माहौल भी चाहिए और मन भी चाहिए। आओ सब मिलकर होली के इस आध्यात्मिक स्वरूप को समझें और इस पर्व के साथ जुड़ रही विसंगतियों को उखाड़ फेकें।

प्रेषकः-(ललित गर्ग)
पटपड़गंज, दिल्ली
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                   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.12.2022-रविवार.