साहित्यशिल्पी-सामाजिक सरोकारों के गाँधीवादी कवि -भवानी प्रसाद मिश्र -

Started by Atul Kaviraje, December 15, 2022, 09:10:12 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित कविताये .

                सामाजिक सरोकारों के गाँधीवादी कवि -भवानी प्रसाद मिश्र -- 
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भवानी प्रसाद मिश्र की कालजयी रचनाएँ -

--4. सुबह हो गई है
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सुबह हो गई है
मैं कह रहा हूँ सुबह हो गई है
मगर क्या हो गया है तुम्हें कि तुम सुनते नहीं हो
अपनी दरिद्र लालटेनें बार-बार उकसाते हुए
मुस्काते चल रहे हो
मानो क्षितिज पर सूरज नहीं तुम जल रहे हो
और प्रकाश लोगों को तुमसे मिल रहा है
यह तो तालाब का कमल है
वह तुम्हारे हाथ की क्षुद्र लालटेन से खिल रहा है
बदतमीज़ी बन्द करो
लालटेनें मन्द करो
बल्कि बुझा दो इन्हें एकबारगी
शाम तक लालटेनों में मत फँसाए रखो अपने हाथ
बल्कि उनसे कुछ गढ़ो हमारे साथ-साथ
हम जिन्हें सुबह होने की सुबह होने से पहले
खबर लग जाती है
हम जिनकी आत्मा नसीमे-सहर की आहट से
रात के तीसरे पहर जग जाती है
हम कहते हैं सुबह हो गई है।

--भवानी प्रसाद मिश्र
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सुशील कुमार शर्मा
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.12.2022-गुरुवार.