साहित्यशिल्पी-प्रदूषण की मार से बसंतोत्सव भी हारा

Started by Atul Kaviraje, December 17, 2022, 09:02:15 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "प्रदूषण की मार से बसंतोत्सव भी हारा" 

                         प्रदूषण की मार से बसंतोत्सव भी हारा-- 
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प्रदूषण की मार से बसंतोत्सव भी हारा - भविष्य में बसंत के लिए कहीं तरसना न पड़े- [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
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     प्रकृति का चक्र बड़ा ही सुकुन देने वाला रहा है। ईश्वर की रचना विभिन्न ऋतुओं द्वारा आम लोगों को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाती रही है। इन्हीं ऋतुओं में एक ऋतु बसंत ऋतु ही है, जिसे ऋतुओं का राजा माना जाता है। शरीर को न चुभने वाली ठंड और न ही गर्मी से परेशान करने वाली आद्रता होती है, बल्कि एक सुकुन देने वाला मौसम बसंत के समय सभी को प्रफुल्लित कर जाता है। अब आधुनिक जीवनशैली में जहां मृत्यु लोक के प्राणियों ने अपना जीवन चक्र वैज्ञानिक अविष्कारों के साथ परिवर्तित कर लिया है और प्रतिदिन करते जा रहे है, उससे न केवल मानवीय जनजाति बल्कि पशु पक्षी को भी मौसम का आनंद मिलना बंद हो चुका है। कुछ ऐसा ही बसंतोत्सव के साथ भी होता दिखाई पड़ रहा है। सभी ओर पर्यावरण की मार ने बसंत के आनंद को ही चौपट कर दिया है। समय रहते यदि हम खुद की जीवन शैली में सुधार नहीं करते है, तो यह कहना गलत नहीं होता कि भविष्य में हमें बसंत जैसा आल्हादित करने वाला मौसम ही न प्राप्त हो। हमारे वर्तमान भविष्य के लिए भी आज का दृश्य किसी भयानकता से कम नहीं है।

     प्रकृति द्वारा प्रदत्त छह ऋतुओं में बसंत ऋतु का एक अलग ही आनन्द और महत्व रहा है। मन का प्रफुल्लित होना, हरियाली का खिलखिला उठना, शब्दों का कविता में बंध जाना, पुष्पों की महक हवा में समा जाना और हर तरह से मानवीय शरीर सहित अन्य प्राणियों के शरीर में उल्लास का भर आना ही बसंत है। बसंत ऋतु का आगमन फरवरी माह में प्रकृति के सौंदर्य के साथ हमारे जीवन में भी रस घोल जाता है। यही कारण है कि इसे मधुमास के नाम से भी जाना जाता है। मनुष्य के दिलों पर राज करने वाला बसंत भौरों और तितलियों के जीवन में भी उल्लास का संचार कर जाता है। ग्रीष्म, वर्षा , शरद, शिशिर, हेमन्त ऋतुओं से अलग बसंत ऋतु हर उम्र वर्ग के लिए अपना महत्व सिद्ध करता रहा है। किसी के लिए यह स्वागत की ऋतु होती है तो किसी के लिए यादों का खजाना। कोई इस ऋतु के इंतजार में बैठा होता है तो कोई अपने पुराने दिनों की तार-झंकार को याद कर प्रसन्न हो उठता है। सभी वर्ग में अपना अलग बसंत होने का एहसास भी युवक-युवतियों के संस्मरणों में समाया होता है। नव चेतना का संचार करने वाली इस ऋतु में प्रेम की नई कोपले फूटना ओर मन को नई दिशाएं मिलना प्रकृति की अनुपम भेट कही जा सकती है।

     पतझड़ में बसंत का आनन्द- युवा मन का नई नवेली दुल्हन मिल जाना या युवती के जीवन में उसके जीवन साथी का प्रवेश होना भी किसी बसंत से कम नहीं कहा जा सकता है। यही युवा मन और युवावस्था की मस्ती जीवन के एक पड़ाव में अधेड़ और वृद्धावस्था तक जा पहुंचती है। ऐसी पतझड़ वाली ढलान भरी उम्र में भीबसंत ऋतु का आगमन वही दशकों पुरानी कुलाचे मारने लगता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो पांच दशक पूर्व की यादें और युवा मन की सोच को फिर से नये पर मिल गये है। मन उडऩा चाहता है। सुनहरे दिन और आनंदमयी रातों में खो जाना चाहता है। सब कुछ भूलकर मन की झंकार वही तान छेडऩा चाहती है जो कभी हमसफर के साथ राग-तंरगियां छेड़ा करती थी। ऐसे बसंत का स्वागत भला कौन नहीं करना चाहेगा, जो मन में दबी-कुचली कलुयता को सदैव के लिए खत्म करे आनंद विभोर कर दे। अपने दूर गये पिया की याद भी विरह की पीड़ा को कम कर जाए तो ऐसे बसंत को भला कौन न जीन ाचाहे। यह एक ऐसी ऋतु है जो हर उम्र दराज के जीवन में रंगों का संचार कर जाती है। जिसे शब्दों के जादूगर ने इन लफ्डरों में कहा है-

बैठे दो क्षण बांध लें फिर हाथों में हाथ
जाने कब झड़ जायेंगे, ये पियराने पात।।
कस कर चिपके डाल से, सुनकर पियरे पात
आयेंगे ऋतु राज कल, लेकर स्वर्ण प्रभात।।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.12.2022-शनिवार.