साहित्यशिल्पी-गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?-2-अ-

Started by Atul Kaviraje, December 23, 2022, 10:19:58 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?" 

             गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?-2--अ-- 
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गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों? - [आलेख]- ललित गर्ग-
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     समग्र देश के आदिवासी समुदाय का नेतृत्व करने वाले गुजरात के आदिवासी समुदाय के प्रेरणापुरुष गणि राजेन्द्र विजयजी पर पिछले दिनों जिस तरह की आक्रामक एवं अराजक घटनाएं हुई हैं और उसके बावजूद उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम न होना भी गुजरात के आदिवासी समुदाय की नाराजगी का कारण बना है। इस स्थिति का भी इन चुनावों पर नकारात्मक असर होगा। गणि राजेन्द्र विजयजी ने गलत आधार पर गैर-आदिवासी को आदिवासी सूची में शामिल किये जाने एवं उन्हें लाभ पहुंचाने की वर्तमान एवं पूर्व सरकारों की नीतियों का विरोध किया। सन् 1956 से लेकर 2017 तक के समय में सौराष्ट्र के गिर, वरड़ा, आलेच के जंगलों में रहने वाले भरवाड़, चारण, रबारी एवं सिद्धि मुस्लिमों को इनके संगठनों के दवाब में आकर गलत तरीकों से आदिवासी बनाकर उन्हें आदिवासी जाति के प्रमाण-पत्र दिये जाने की घटना को लेकर गणि राजेन्द्र विजयजी ने आन्दोलन शुरु किया। उनका मानना है कि यह पूरी प्रक्रिया बिल्कुल गलत, असंवैधानिक एवं गैर आदिवासी जातियों को लाभ पहुंचाने की कुचेष्टा है, जिससे मूल आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है, उन्हें नौकरियों एवं अन्य सुविधाओं से वंचित होना पर रहा है। यह मूल आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय है और उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित करना है। पिछले 60 वर्षों से चला आ रहा मूल आदिवासी जाति के अधिकारों के जबरन हथियाने और उनके नाम पर दूसरी जातियों को लाभ पहुंचाने की अलोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को तत्काल रोका जाना आवश्यक है अन्यथा इन स्थितियों के कारण आदिवासी जनजीवन में पनप रहा आक्रोश एवं विरोध विस्फोटक स्थिति में पहुंच सकता है। गणि राजेन्द्र विजयजी न केवल गुजरात बल्कि देश में सर्वत्र आदिवासी समुदाय को उनके अधिकार दिलाने एवं उनके जीवन के उन्नत बनाने के लिये प्रयासरत है। ऐसे कार्यों की सराहना की बजाय विरोध एवं विध्वंस झेलना पड़े, यह लोकतंत्र के लिये शर्मनाक है।

--प्रेषकः-(ललित गर्ग)
--दिल्ली-11 00 51
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.12.2022-शुक्रवार.