मुकुल का मीडिया-कविता-नया साल और मैं

Started by Atul Kaviraje, December 23, 2022, 10:46:14 PM

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Atul Kaviraje

                                   "मुकुल का मीडिया"
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मित्रो,

     आज पढते है, मुकुल, इनके "मुकुल का मीडिया" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "नया साल और मैं"

                                  "नया साल और मैं"
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३१ दिसम्बर २००७ रात को १०.३० पर सोने की नाकाम कोशिश
११.०० कोशिश एक बार फिर नाकाम
११.३० इस बार मैंने फैसला कर लिया था नहीं उठना है लेकिन ...
आप भी सोच रहे होंगे कि ये माजरा क्या है
अगर नींद न आने पर कोई लेख लिख रहे हैं तो सॉरी ले लो जी इस ब्लोग को जवान लोग पढ़ते हैं और उनेह खूब नींद आती है
और अगर आप को नींद नहीं पड़ती तो हम क्या करें
खैर ये लेख मैं महज़ अपनी कुंठा मिटाने के लिए लिख रहा हूँ
ये हर साल मेरे लिए एक समस्या रहती है जब ३१ तारीख को यार दोस्त पूछना शुरू करते हैं
क्या कार्यकर्म है ?
कहाँ जा रहे हो ?
क्या करोगे ?
अब मैं क्या कहूँ कि जब सारी दुनिया पागल हो तो मैं भी पगला जाऊँ
मैं वापस मुद्दे पर लौटता हूँ ये लेख मैं महज़ इसलिए लिख रहा हूँ कि मेरे घर के आस-पास इतना शोर है कि मैं चाह कर सो नही सकता तो सोचा क्यों न अपना गम बांटा जाये और किसी सोते हुए को जगाया जाये (मेरी कॉलोनी में कुछ भाई लोग डी जे पर मस्त हैं और मेरा सोना हराम है )
ये नया साल है क्या मुझे नही पता
मेरा अबोध मन कहता है कि ये एक मथेमतिकल टर्म है और कुछ नहीं
नए साल में क्या सूर्य पश्चिम से उगता है ?
नए साल में क्या सूर्य पूरब में डूबता है ?
नए साल में क्या पूरे भारत में बिजली रहती है ?
नए साल में क्या सब खुश रहते हैं ?
नए साल में क्या देश में इम्मान्दारों की नयी जमात पैदा हो जाती है ?
आदि आदि आदि और आदि
ये कुछ इसी तरह का मामला है कि गिनती पढेंगे तो पहले १ आएगा फिर १०० आएगा
ये नए साल का मामला भी कुछ ऐसा ही है
नया साल मतलब जो बच्चा है वो जवान होगा जो जवान है वो बूढा होगा जो बूढा वो भगवन के पास जाएगा
जीवन का चक्र चलता रहेगा तो ख़ुशी मनाने के लिए किसी खास दिन का इंतज़ार क्यों ?

जब सारे दिन एक ही जैसे रहते हैं तो हर दिन को नए दिन की तरह अच्छा बनाने की कोशिश हम क्यों नहीं करते सिर्फ पार्टी मना लेने हुडदंग मचा लेने से पूरा साल अच्छा रहने वाला है तब तो सारी दुनिया इस दिन पागल होकर रोड पर होगी
खैर वो एक गाना याद है न

कहता है जोकर सारा ज़माना
आधी हककीकत आधा फ़साना
चश्मा उतारो फिर देखो यारो
दुनिया वही है चहेरा पुराना

नए साल की शुभकामना की औपचारिकता निभाते हुए (नही तो आप मुझे पिछड़ा समझेंगे )इस उम्मीद में मैं आपसे विदा लेता हूँ कि आप साल के हर दिन को नए साल के पहले दिन जैसा खूबसूरत बनाने की कोशिश करेंगे, और हाँ

किसी का भी दिल नहीं दुखायेंगे
इस नये साल में मेरी इतनी बात मानेंगे ना

चलते चलते

इस नए साल में कुछ नया कीजिए
जो किया है उसके सिवा कीजिए
ख़त बधाई का बेशक लिखें दोस्तों
दुश्मनों के लिए भी दुआ कीजिए

--मुकुल
(MONDAY, DECEMBER 31, 2007)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-मुकुल मीडिया.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.12.2022-शुक्रवार.