पहली बार-जावेद आलम खान की कविताएं

Started by Atul Kaviraje, December 23, 2022, 10:49:21 PM

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Atul Kaviraje

                                    "पहली बार"
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मित्रो,

     आज पढते है, "पहली बार" इस कविता ब्लॉग की जावेद आलम खान की कविताएं-

     जिंदगी एक अजीब सा फलसफा है। कुल मिला कर यह एक खूबसूरत सा एहसास भी है। जिंदगी के हर पल को प्यार और खुशी के साथ जीना चाहिए। वैसे भी घृणा और नफरतों की उम्र काफी छोटी होती है। युद्ध छिड़ते हैं और उनकी नियति जल्द समाप्त होने की होती है। घृणा हो, नफरत, हिंसा हो या युद्ध का उन्माद यह सब लंबे समय तक अस्तित्व में नहीं रह पाते। कवि जिंदगी के खूबसूरत एहसास को भली-भांति जानता समझता है और इसीलिए वह हमेशा मनुष्यता के पक्ष में रहता है। वह जानता है कि खूबसूरती बचेगी तो मनुष्यता बचेगी। जावेद आलम खान हमारे समय के ऐसे महत्वपूर्ण और जरूरी कवि हैं जो अपनी कविताओं में अपने वक्त के सवालातों से गुजरते में नहीं हिचकते और गांधी जी को याद करते हैं। वह जिंदगी को पायल की महीन आवाज जैसी तो पाते ही हैं साथ ही वह उसे उस किसान के जैसी भी पाते हैं जो सर्द रातों में भी अलाव जला कर खेत की रखवाली करता है। यह भी जिंदगी को बचाए रखने की एक जद्दोजहद ही है जिस पर इस युवा कवि की सतत नजर है। आइए आज पहली बार ब्लॉग पर हम पढ़ते हैं जावेद आलम खान की कविताएं।

     एक अराजक कविता--
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झूठे हैं तुम्हारे दावे
अगर प्रेम की भाषा मौन होती
तो दुनिया गूंगों पर लुटाती सबसे ज्यादा प्यार
अगर अहसास ही वाहक होते प्रेम के
सचमुच होते आत्मा के आंख कान आवाज
तो जोकर कभी प्यार से महरूम न रहते
तो क़ाबील ने हाबील का कत्ल न किया होता
तो दुनिया को गले लगाने के लिए फैली बांहे
कील ठोक कर सलीब पर नही चढ़ाई जाती

तुम्हारा महापुरूष होना तुम्हारी सफगोई से ज्यादा
हाथ की सफाई से तय होता है
तमाम मोजज़े इत्तिफाक की बुनियाद पर खड़े हैं
अपनी हवस को जरूरत का नाम देना
मानव विज्ञान का प्राथमिक सिद्धांत है 
दुनियावी तहजीब की पहली शर्त है
और दुनिया का सबसे आसान काम

यह कहना कि जानवरों से हिफाजत के लिए
संगताराशी पर हसीनतरीन मुजस्समे गढ़ने वाले
हाथों ने पत्थरों के नुकीले हथियार बनाए थे
पहचान लेना इसे कहने वाले धूर्त हैं
यह उतना ही बड़ा झूठ है
जितना गांधी हत्या को वध कहना

     अराजकता के दौर में--
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जब कविता कह कर कत्ल हो रही थी कविता
तब प्रतिभाओं को निगलते हुए अजगरों के वंशज
भाव और भाषा में संबंध जोड़ने के बजाय
मंचों से संबंध बिठाने में लगे थे
वे कविता के नही मंचों के सगे थे
जो लिख रहे थे वे दर्शक थे चुप थे ठगे थे

न प्रेम की भाषा मौन है
न सच बोलने वाला महापुरूष है
न भावों का उच्छलन कविता है
जिनके लिए गीत उपन्यास हैं गजल मर्सिया हैं
उनके लिए प्रेम, महानता, कवि और कविता
दरअसल रिश्तों और शब्दों में
जोड़ तोड़ की अंतहीन प्रक्रिया है

--जावेद आलम खान
(दिसंबर 11, 2022)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-पहली बार.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.12.2022-शुक्रवार.