काव्यालय कविता-कविता सुमन-23-कुछ नहीं हिला उस दिन

Started by Atul Kaviraje, January 04, 2023, 09:27:03 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                   "काव्यालय कविता"
                                    कविता सुमन-23
                                  ------------------ 

मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "काव्यालय कविता" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "कुछ नहीं हिला उस दिन"

                                "कुछ नहीं हिला उस दिन"
                               ------------------------

कुछ नहीं हिला उस दिन
न पल न प्रहर न दिन न रात

सब निश्छल खड़े रहे
ताकते हुए अस्पताल के परदे
और दरवाजे और खिड़कियाँ
और आती-जाती लड़कियाँ
जिन्हे मैं सिस्टर नहीं कहना चाहता था
कहना ही पड़ता था तो पुकारता था बेटी कहकर

और दूसरे दिन जब हिले
पल और प्रहर और दिन और रात
तब सब एक साथ बदल गये मान
अस्पताल के परदे और दरवाजे
और खिड़कियाँ और
कमरे में आती-जाती लड़कियाँ
सिरहाने खड़ी मेरी पत्नी
पायताने बैठा मेरा बेटा
अब तक की गुमसुम मेरी लड़की
और बाहर के तमाम झाड़
शरीर के भीतर की नसें
मन के भीतर के पहाड़

ऐसा होता है समय कभी कितना सोता है
कभी कितना जागता है
लगता है कभी कितना हो गया है स्थिर
कभी कितना भागता है !

--भवानीप्रसाद मिश्र
(साहित्य अकादेमी पुरस्कृत संकलन "बुनी हुई रस्सी" से)
------------------------------------------------
(3 May 2019)
---------------

                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-काव्यालय.ऑर्ग/युगवाणी)
                     ---------------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.01.2023-बुधवार.