काव्यालय कविता-कविता सुमन-25-जबड़े जीभ और दाँत

Started by Atul Kaviraje, January 06, 2023, 09:30:59 PM

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Atul Kaviraje

                                 "काव्यालय कविता"
                                  कविता सुमन-25
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "काव्यालय कविता" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "जबड़े जीभ और दाँत"

                                 "जबड़े जीभ और दाँत"
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जबड़े जीभ और दाँत दिल छाती और आँत
और हाथ पाँव और अँगुलियाँ और नाक
और आँख और आँख की पुतलियाँ
तुम्हारा सब-कुछ जाँचकर देख लिया गया है
और तुम जँच नहीं रहे हो
लोगों को लगता है
जीवन जितना
नचाना चाहता है तुम्हें
तुम उतने नच नहीं रहे हो

जीवन किसी भी तरह का इशारा दे
और नाचे नहीं आदमी उस पर तो यह
आदमी की कमी मानी जाती है इसलिए
जबड़े जीभ और दाँत दिल छाती और आँत
तमाम चीज़ों को इस लायक बनाना है
वे इसीलिए जाँची जा रही हैं
और तुम्हें डालकर रखा गया है बिस्तरे पर

यह सब तुम्हारे भले कि लिए है
इस तरह तुम नाचने में समर्थ बनाए जाओगे
यानी जब घर आओगे अस्पताल से
तब सब नाचेंगे कि तुम
हो गए नाचने लायक!

--भवानीप्रसाद मिश्र
(साहित्य अकादेमी पुरस्कृत संकलन "बुनी हुई रस्सी" से)
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(10 May 2019)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-काव्यालय.ऑर्ग/युगवाणी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.01.2023-शुक्रवार.