निबंध-क्रमांक-132-साइकिल की सवारी पर निबंध

Started by Atul Kaviraje, January 08, 2023, 09:34:29 PM

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Atul Kaviraje

                                       "निबंध"
                                     क्रमांक-132
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मित्रो,

      आईए, पढते है, ज्ञानवर्धक एवं ज्ञानपूरक निबंध. आज के निबंध का शीर्षक है- " साइकिल की सवारी पर निबंध "

       साइकिल की सवारी पर निबंध-Essay on Bicycle Riding--
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     आपने चाहे जितनी भी रंगबिरंगी, छोटी-बड़ी सवारियाँ देखी हो, किंतु साइकिल की सवारी सबसे अनोखी, सबसे निराली है। आप जब चाहिए, इसकी सीट पर बैठ जाइए, हैंडिल थाम लीजिए, पैडिल मारते जाइए और मस्ती से निकलते जाइए। जब आप इसपर सवार होते हैं, तब आपकी शान के क्या कहने! सचमुच साइकिल मस्तमौलों की सवारी है, अल्हड़ नौजवानों की सवारी है, अपनी भुजाओं पर आस्था रखनेवालों की सवारी है, अपनी श्रमशक्ति पर विश्वास रखनेवालों की सवारी है।

     वनस्थली की माँग-सी तनी पहाड़ी सड़कों पर साइकिल की सवारी पर जितनी तल्लीनता से आप प्राकृतिक सुषमा का पान कर सकते हैं, शायद ही किसी अन्य सवारी से कर पाएँ। आप बढ़ते जाइए, मौन के संगीत का मजा लेते जाइए, तरुराजि की हरीतिमा से नेत्ररंजन करते जाइए, पर्वत के वक्षःस्थल पर हीरकहार-से तिरते उज्ज्वल जलस्रोत का सौंदर्य निहारते जाइए, तृणाच्छादित तराइयों के बीच वनगायों की बारात देखते जाइए, झुरमुटों के बीच वनजंतुओं की क्रीड़ा निहारते जाइए। अथवा, जिधर सड़कें बनी हों. उन ग्रामीण क्षेत्रों में निकलकर खेत की बालिश्त-भर चौड़ी मेड पर साइकिल चलाते हए सरकस खेलने का मजा लीजिए और साथ ही आनंद मनाइए कि कहीं मकई की धनसिया आपके मस्तक पर गिरकर केसर-सी छा रही है, कहीं गन्ने के पत्ती आपकी छाती से रगड़ खा रही है, कहीं धान के पौधे आपके ठेहुने को पकड़ने की चेष्टा कर रहे है तो कहीं शकरकंद की लत्तियाँ साइकिल के चक्के से लिपटने की चेष्टा कर रही हैं. जीने के लिए किसी सहारे की तलाश कर रही हैं या फिर कहीं सौंफ के पौधे अपनी सगंधि का उपहार देकर आपको फिर-फिर आने का निमंत्रण जता रहे हैं।

     अगर पहाड़ी राजमार्ग से निकल जाइए, तो देखिए कि टेसू के लाल-लाल फूल आपके भीतर के दर्द को उभार रहे हैं या वटवृक्ष अपनी घनी डालियों का चॅदोवा डालते हुए प्रलयकालीन पारावार में अपनी पत्रशय्या पर पड़े बालगोविंद की कथा याद करा रहे हैं या पीपल के पेड़ प्रह्लाद की कथा याद दिला रहे हैं या पाकड़ के पेड़ आपके ऊपर अपने फलों को टपकाते हुए काकभुशुंडि की कथा का संकेत कर रहे हैं।

     अगर मस्ती है आपमें, ऋतुओं की चुनौती स्वीकार करने का सामर्थ्य है आपमें, तो फिर क्या कहने! चाहे लू की चिनगारियाँ उड़ाता ग्रीष्म हो या झड़ी की छड़ी चलाती बरसात या हिमबाण छोड़ता शिशिर-कोई बात नहीं, आप दनादन साइकिल चलाते जाइए, जवानी की पताका उड़ाते हुए निकल जाइए। जो फूलों के पाँवड़े पर नहीं, वरन् शूलों की धार पर मुसकराए, उसका नाम है जवानी। जिसने सर से कफन बाँध लिया, जिसने पीड़ाओं की छाती पर पाँव बढ़ाना जान लिया, उसके लिए साइकिल की सवारी का कोई जवाब नहीं, कोई जोड़ा नहीं।

     जी हाँ! यदि कोई दूसरी सवारी से इसकी तुलना करेंगे, तो पता चलेगा इसकी अद्वितीयता का। बिना नीम खाए गुड़ का स्वाद मालूम हो तो कैसे? हाथी रखिए, तो अकेला वह चालीस-पचास व्यक्तियों का राशन साफ कर देगा, घोड़ा रखिए तो कितनी ही घास और दाना हजम कर डालेगा, मोटर रखें तो लिटर-का-लिटर पेट्रोल गटक जाएगी, रेलगाड़ी हो, तो टन-का-टन कोयला हजम कर जाए! और, हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर? इन्हें तो बस, अगस्त्य ही समझिए, जो चुल्लू में सागर गटक जाएँ और, रॉकेट? नाम मत लीजिए। इसके चारे-दाने ने तो अमेरिका जैसे सबसे समृद्ध देश की भी हालत बिगाड़ दी है।

--सतीश कुमार
(मार्च 26, 2021)
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                       (साभार एवं सौजन्य-माय हिंदी लेख.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.01.2023-रविवार.