साहित्यशिल्पी-कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास

Started by Atul Kaviraje, January 11, 2023, 09:42:45 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास"

कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास - दीपावली पर विशेष...[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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     दीपावली पर्व मनाने को लेकर चली आ रही मान्यताओं में लगभग प्रत्येक धर्म सम्प्रदाय में अलग अलग विचार धाराएं प्रचलित है। ईशा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य के अर्थशास्त्र को माने तो अमावस्या के दिन मंदिरों और घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप जलाने की परंपरा चलन में थी, जो धीरे धीरे दीवाली में परिवर्तित हो गयी। कहते है अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन शुरू हुआ था। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही विहार कर पावापुरी में अपना शरीर त्यागा था। यही कारण है कि महावीर निर्माण संवत्ï दीपावली के दूसरे दिन से शुरू होता है। दीपमालिका के पर्व का उल्लेख प्राचीन जैन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। जैन धर्म के जानकारों का मानना है कि कल्पसूत्र में स्पष्टï वर्णन है कि महावीर निर्वाण के साथ जो अंतज्र्याति सदा के लिए शांत हो हो गयी है, आओ हम उसकी प्रतिपूर्ति के लिए बहीज्र्योति के प्रतीक दीप प्रज्ज्वलित करें। पंजाब में जन्में स्वामी रामतीर्थ के विषय में भी ऐसे उल्लेख मिलते है कि उनका जन्म और महाप्रयाण दोनों ही दीपावली के दिन हुआ। स्वामी रामतीर्थ ने अपने जीवन के उद्देश्यों को पूरा करने के साथ दीपोत्सव पर्व के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम्ï' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात दीपावली के दिन अजमेर के पास अवसान लिया। दयानंद सरस्वती जी ने ही आर्य समाज की स्थापना में अमूल्य सहयोग प्रदान किया। इतिहास के पन्नों में मुगल सम्राट द्वारा भी दीपावली मनाये जाने की जानकारी मिलती है। कहते है दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक माने जाने वाले मुगल सम्राट अकबर के शासन काल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन प्रज्ज्वलित किया जाता था। बादशाह जांहगीर द्वारा दीपावली धूमधाम से मनाये जाने का वर्णन मिलता है। इसी प्रकार शाह आलम द्वितीय के काल में भी संपूर्ण शाही महल को दीपो से सुसज्जित कर लाल किले में आयोजित कार्यक्रमों और आयोजनों में हिंदू, मुस्लिम एक साथ हिस्सा लेते थे।

     दीपावली से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला नरक चतुर्दशी का पर्व भी काफी महत्व रखता है। एक पौराणिक कथानक के अनुसार रंतिदेव नामक एक पुण्यात्मा राजा ने अपने जीवनकाल में अनजाने में भी पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो अपने समक्ष यमदूतों को देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोला मैंने तो कभी कोई पाप नहीं किया है, फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आये हो। आप मुझ पर कृपा करें और बतायें कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक में जाना पड़ रहा है। राजा की ऐसी वाणी सुनकर दूतों ने कहा कि राजन आप के द्वार से एक बार एक ब्राह्मïण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है। कहते है कि राजा ने यमदूतों से एक वर्ष का समय लेकर ऋषियों के पास जाकर पाप मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषियों ने राजा को कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया और कहा कि उस दिन ब्राह्मïणों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें तथा अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने ऐसा ही किया और अंत में विष्णु लोक में स्थान पाया। उसी दिन से नरक चतुर्दशी छोटी दीवाली के रूप में मनायी जाने लगी।

--प्रस्तुतकर्ता-(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
--राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.01.2023-बुधवार.