इतर कविता-(क्रमांक-104)-…अन गझल उमलली!

Started by Atul Kaviraje, January 12, 2023, 10:28:10 PM

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Atul Kaviraje

                                      इतर कविता 
                                    (क्रमांक-104)
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     "इतर  कविता"  अंतर्गत  मी  इतर  कवींच्या  कविता  आपणापुढे  सादर  करीत आहे .

                                 *...अन गझल उमलली!*
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...अन गझल उमलली ! मराठी भावानुवाद--

*...अन गझल उमलली!*

उर्दूतील प्रसिद्ध शायर जफर गोरखपुरी ह्यांच्या
'तो समझो गझल हुई' ह्या गझलचा मराठी भावानुवाद--
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*मूळ गझल*

मिले किसीसे नजर, तो समझो गझल हुई,
रहे ना अपनी खबर,तो समझो गझल हुई

मिला के नजरों को, वो हया से फिर,
झुका ले कोई नजर,तो समझो गझल हुई

इधर मचल कर उन्हें, पुकारे जुनूं मेरा,
भडक उठे दिल उधर, तो समझो गझल हुई

उदास बिस्तर की सिलवटें, जब तुम्हें चुभें,
न सो सको रातभर, तो समझो गझल हुई

वो बदगुमां हो तो, शेर सुझे ना शायरी,
वो महर-बां हो 'जफर', तो समझो गझल हुई
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मराठी भावानुवाद--
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*...अन गझल उमलली!*

भेटता हे, नयन अपुले,बघ गझल उमलली!
मजसी मी, विसरलो अन, बघ गझल उमलली!

बघुन क्षणभर तिने, लाजेने मग हळुच,
नजर खाली झुकविली अन, बघ गझल उमलली !

हे उदास शयन नी;सुरुकुत्या खुपती जीवा,
रात्र सारी जागता मी ,बघ गझल उमलली!

झुरता मी हाय! येथ , 'तिकडेही' अन बघा,
'आग रेशम' चेतली अन, बघ गझल उमलली !

असताना ती रुसुन, कविता ना मज सुचे,
गोड ती हसली 'जफर' अन,बघ गझल उमलली !

(ह्या भावानुवादात जर 'उमलली' हा शब्दाच्या
ठिकाणी 'उमजली' हा शब्द घातला तर
आशयाचा आणखी एक पदर दिसु शकतो असे
मला वाटते.)

*–मानस*
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संकलक-सुजित बालवडकर
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                  (साभार आणि सौजन्य-मराठी कविता.वर्डप्रेस.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.01.2023-गुरुवार.