साहित्यशिल्पी-एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय

Started by Atul Kaviraje, January 24, 2023, 10:13:57 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय"

   एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय [आलेख]- महेन्द्र सिंह--
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     ''अपने पास रखो अपने सूरजों का हिसाब, मुझे तो आखिरी घर तक दीया जलाना है''- एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय - महेन्द्र सिंह, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), ग्रामीण विकास एवं स्वास्थ्य , उत्तर प्रदेश सरकार

     अति मेधावी छात्र के रूप में आपने पहचान बनायी:-

     आपका जन्म 25 सितम्बर 1916 में मथुरा के छोटे से गांव 'नगला चंद्रभान' में हुआ था। तीन वर्ष की उम्र में आपकी माताजी का तथा 7 वर्ष की कोमल उम्र में आपके पिताजी का देहान्त हो गया। वह माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। किन्तु उन्होंने अपने असहनीय दर्द की दिशा को बहुत ही सहजता, सरलता तथा सुन्दरता से लोक कल्याण की ओर मोड़ दिया। वह हंसते हुए जीवन में संघर्ष करते रहे। आपको पढ़ाई का शौक बचपन से ही था। इण्टरमीडिएट की परीक्षा में आपने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक अति मेधावी छात्र होने का कीर्तिमान स्थापित किया। आप अन्तिम सांस तक जिन्दगी परम सत्य की खोज में लोक कल्याण से भरे जीवन्त साहित्य की रचना करने तथा उसे साकार करने जुटे रहे। ''न जाने कौन सी दौलत थी उनके लहजे में, वो बोलते थे तो दुनिया खरीद लेते थे''

     मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा:-

     आपकी सीख थी कि जब आप जो कहते हैं, वही करते हैं, जो करते हैं, वही सोचते हैं और जो सोचते हैं, वहीं आपकी वाणी में आता है तब ईश्वरीय तथा प्रकृति की तमाम शक्तियाँ आपकी मदद करने के लिए चारों ओर से आ जाती हंै। भारत माता के इस जाबाज सपूत के सपने को पूरा करने के लिए आज देश अकुलित तथा संकल्पित है। देश-प्रदेश ऐसे भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सर्वोपरि हो और प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान मिले। आपके जज्बे को सलाम करते हुए किसी शायर की यह दो शायरियाँ प्रस्तुत हंै - हाजब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया, मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा। वतन की रेत, मुझे एड़ियां रगड़ने दे, मुझे यकीं है, पानी यहीं से निकलेगा।

     खुदा आपके सपनों को सलामत रक्खे, ये ज़मीं पे रह के फरिश्तों का काम करते थेः-

     पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक प्रखर विचारक, अर्थचिन्तक, शिक्षाविद्, साहित्यकार, उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा एक बहुमुखी प्रतिभा ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने जीवनपर्यंन्त अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। दीनदयाल जी की मान्यता थी कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी मजहब और संप्रदाय के आधार पर भारतीय संस्कृति का विभाजन करने वालों को देश के विभाजन का जिम्मेदार मानते थे। वह हिन्दू राष्ट्रवादी तो थे ही, इसके साथ ही साथ वे भारतीय राजनीति के पुरोधा भी थे। उनकी कार्यक्षमता और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- 'यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं'। आपके जुझारू व्यक्तित्व को यह शायरी पूरी तरह से अभिव्यक्त करती है - मंै कतरा हो के भी तूफां से जंग लेता हूं, मुझे बचाना समन्दर की जिम्मेदारी है। दुआ करें सलामत रहे मेरी हिम्मत, यह चराग कई आंधियों पे भारी है।

--प्रदीप कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
रायबरेली रोड, लखनऊ
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.01.2023-मंगळवार.
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