मेरी धरोहर-कविता सुमन-44-ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है

Started by Atul Kaviraje, January 25, 2023, 09:19:53 PM

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Atul Kaviraje

                                       "मेरी धरोहर"
                                     कविता सुमन-44
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है..."

                             "ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है"   
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कहीं जीने से मैं डरने लगा तो....?
अज़ल के वक़्त ही घबरा गया तो ?

ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है
अगर मैं ज़ब्त करके रह गया तो....?

ख़ुशी से नींद में ही चल बसूंगा
वो गर ख़्वाबों में ही मेरा हुआ तो...

ये ऊंची बिल्डिंगें हैं जिसके दम से
वो ख़ुद फुटपाथ पर सोया मिला तो....?

मैं बरसों से जो अब तक कह न पाया
लबों तक फिर वही आकर रूका तो....?

क़रीने से सजा कमरा है जिसका
वो ख़ुद अंदर से गर बिखरा मिला तो ?

लकीरों से हैं मेरे हाथ ख़ाली
मगर फिर भी जो वो मुझको मिला तो ?

यहां हर शख़्स रो देगा यक़ीनन
ग़ज़ल गर मैं यूं ही कहता रहा तो.....

सफ़र जारी है जिसके दम पे `कान्हा
अगर नाराज़ वो जूगनू हुआ तो?

--प्रखर मालवीय 'कान्हा'
--Posted by-यशोदा अगरवाल
(Tuesday, December 31, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.01.2023-बुधवार.
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