साहित्यशिल्पी-नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला-आलेख–2

Started by Atul Kaviraje, January 30, 2023, 09:20:11 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला"

नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला - देवी शक्तियों का बस्तर- [आलेख – 2]- राजीव रंजन प्रसाद--
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     वस्तुत: प्रतापरुद्र (राजा अन्नम देव जिन्होंने बस्तर में काकतीय/चालुक्य वंश की स्थापना की) के बड़े भाई थे तथा वारंगल पर मुस्लिम आक्रांताओं की विजय से पहले वे सर्वाधिक प्रतापी तथा धनाड्य राजाओं में गिने जाते थे। अत: यदि इस श्लोक के आधार पर माता मणिकेश्वरी देवी को काकतीय राजाओं के साथ वारंगल से बस्तर लाया जाना माना जाये तो फिर माता दंतेश्वरी का बस्तर में स्थान अधिक प्राचीन होगा। इस सम्बन्ध में लाला जगदलपुरी अपनी किताब "बस्तर – लोक कला संस्कृति प्रसंग" में लिखते हैं कि "बारसूर की प्राचीन दंतेश्वरी गुड़ी को नागों के समय में पेदम्मा गुड़ी कहा जाता था। तेलुगू में बड़ी माँ को पेदम्मा कहा जाता है। तेलिगु भाषा नागवंशी नरेशों की मातृ भाषा थी। वे दक्षिण भारतीय थे। बारसूर की पेदम्मा गुड़ी से अन्नमदेव ने पेदम्मा जी को दंतेवाड़ा ले जा कर मंदिर में स्थापित कर दिया। तारलागुड़ा में जब देवी दंतावला अपने मंदिर में स्थापित हो गयी तब तारलागुड़ा ग्राम का नाम बदल कर दंतावाड़ा हो गया, उसे लोग दंतेवाड़ा भी कहने लगे।"

     छत्तीसगढ़ परिचय में प्रकाशित डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र का एक आलेख आलेख इस सम्बन्ध में बिलकुल अलग तथ्य सामने लाता है। वे लिखते हैं "काकतीय तथा दंतेश्वरी के नामों के पीछे रहस्य हैं कि इस घराने के आदि पुरुष महाभारतकालीन पाण्डव थे। दिल्ली की दुर्दशा के बाद उन्होंने दक्षिण की शरण ली। गुरु द्रोणाचार्य की शिष्य परम्परा के कारण उन्होंने अपने वंश का नाम काकतीय रखा। संस्कृत में काक को द्रोण भी कहते हैं। संस्कृत में हस्ती को दंती भी कहते हैं इस तरह हस्तिनापुर की अधिष्ठात्री देवी हस्तेश्वरे कहलाने के बदले दंतेश्वरी कही गयीं। इस कथन के समर्थन में इतिहासकार हीरालाल (1916:289) लिखते हैं कि बस्तर के नागवंशी राजाओं की कुलदेवी मणिक्येश्वरी थीं। बस्तर के अनेको अभिलेखों में नागफण मणि की चर्चा की गयी है अत: यह आधार भी नाग राजाओं के मणिकेश्वरी देवी के उपासक होने की कड़ी की तरह जुड़ता है। इस कड़ी को जोड़ने का कुछ प्रयास डॉ. हीरालाल शुक्ल ने भी लिया है जहाँ अपनी किताब चक्रकोट के छिन्दक नाग (760 ई. से 1324 ई) में वे लिखते हैं कि "मणिकेश्वरी एक तांत्रिक देवी हैं। भैरवयामलमंत्र के अनुसार मणि एक चक्र है, तेज या ज्ञानसन्दोह का उपलक्षक है तथा मणिमण्डप पर विन्ध्यवासिनी देवी बैठती हैं।" वे आगे लिखते हैं कि मणिकेश्वरी विन्ध्यवासिनी देवी का पर्याय हैं। इस सम्बन्ध में ध्यातव्य है कि सोमेश्वर प्रथम जैसा नाग शासक चक्रकोट पर पुन: साम्राज्य स्थापित करने में विन्ध्यवासिनी देवी का प्रसाद (ईपी. इंडिका 10:37) मानता है – विन्ध्यवासिनीदेविवर प्रसाद (तदेव 10:25) के अभिलेखीय सन्दर्भ मिलते हैं।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.01.2023-सोमवार.
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