मेरी धरोहर-कविता सुमन-52-मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या...

Started by Atul Kaviraje, February 02, 2023, 10:04:38 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-52
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या..."

                      "मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या..."   
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मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या
बताऊँ क्या तुन्हें यारो मिरा ठिकाना क्या

किनारे लाख कहें तुम यक़ीन मत करना
'वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या'

हरेक दिल में धड़कता है फ़िक्र में तू है
बना सकेगा कोई तुझसे फिर बहाना क्या

जो दिल चुराओ तो जानें कि चोर हो तुम भी
नज़र चुरायी है तुमने नज़र चुराना क्या

जहाने-शौक़ में हर सम्त जब तुम्हीं तुम हो
मिरी हक़ीक़तें क्या हैं मिरा फ़साना क्या

जो जी रहा है उसे मौत भी तो आयेगी
किसी के रोके रुका है ये आना-जाना क्या

नज़र-नज़र में हैं परछाइयाँ फ़रेबों की
तो ऐसी बज़्म में रुख़ से नक़ाब उठाना क्या

जिसे भी देखिये है अपनी ख़ाहिशों का असीर
अगर ये सच है तो दुनिया को आज़माना क्या

न जाने कब से 'अभय' हम निढाल हैं ग़म से
ख़ुशी मिले भी तो फिर उसपे मुस्कुराना क्या

--अभय कुमार 'अभय'
--Posted by yashoda Agrawal
(Thursday, December 26, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-02.02.2023-गुरुवार.
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