मेरी धरोहर-कविता सुमन-55-गुनाह कुछ तो मुझे बेतरह लुभाते हैं...

Started by Atul Kaviraje, February 05, 2023, 10:06:13 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-55
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "गुनाह कुछ तो मुझे बेतरह लुभाते हैं...."

                           "गुनाह कुछ तो मुझे बेतरह लुभाते हैं..."   
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मिला न खेत से उसको भी आबो-दाना क्या
किसान शह्र को फिर इक हुआ रवाना क्या

कहाँ से लाये हो पलकों पे तुम गुहर इतने
तुम्हारे हाथ लगा है कोई ख़ज़ाना क्या

उमस फ़ज़ा से किसी तौर अब नहीं जाती
कि तल्ख़ धूप क्या, मौसम कोई सुहाना क्या

तमाम तर्ह के समझौते करने पड़ते हैं
मियां मज़ाक़ गृहस्थी को है चलाना क्या

गुनाह कुछ तो मुझे बेतरह लुभाते हैं
ये राज़ खोल ही देता हूँ अब छुपाना क्या

हो दुश्मनी भी किसी से तो दाइमी क्यूँ हो
जो टूट जाये ज़रा में वो दोस्ताना क्या

ख़बरनवीस नहीं हूँ मैं एक शायर हूँ
तमाम मिसरे मिरे हैं, नया-पुराना क्या

न धर ले रूप कभी झोंक में तलातुम का
'वो नर्म रौ है नदी का मगर ठिकाना क्या'

करो तो मुंह पे मलामत करो मिरी 'सौरभ'
ये मेरी पीठ के पीछे से फुसफुसाना क्या.

--सौरभ शेखर
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Posted by yashoda Agrawal
(Saturday, December 14, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.02.2023-रविवार.
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