मेरी धरोहर-कविता सुमन-56-अपने हाथ लरजते देखे, अपने आप ही संभली मैं

Started by Atul Kaviraje, February 06, 2023, 09:30:24 PM

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Atul Kaviraje

                                    "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-56
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "अपने हाथ लरजते देखे, अपने आप ही संभली मैं..."

                    "अपने हाथ लरजते देखे, अपने आप ही संभली मैं..."   
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उम्र में उससे बड़ी थी लेकिन पहले टूट के बिखरी मैं
साहिल-साहिल ज़ज़्बे थे और दरिया-दरिया पहुंची मैं

उसकी हथेली के दामन में सारे मौसम सिमटे थे
उसके हाथ में जागी मैं और उसके हाथ से उजली मैं

एक मुट्ठी तारीक़ी में था, एक मुट्ठी से बढ़कर प्यार
लम्स के जुगनू पल्लू बांधे ज़ीना-ज़ीना उतरी मैं

उसके आँगन मैं खुलता था शहरे-मुराद का दरवाज़ा
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में लोकर पलटी मैं

मैंनें जो सोचा यूं, तो उसने भी वही सोचा था
दिन निकला तो वो भी नहीं था और मौज़ूद नहीं थी मैं

लम्हा-लम्हा जां पिघलेगी, क़तरा-क़तरा शब होगी
अपने हाथ लरजते देखे, अपने आप ही संभली मैं

--किश्वर नाहिद
बुलन्द शहर (उ.प्र.)
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--yashoda Agrawal
(Friday, December 13, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.02.2023-सोमवार.
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