मेरी धरोहर-कविता सुमन-60-रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ ?...

Started by Atul Kaviraje, February 10, 2023, 10:31:38 PM

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Atul Kaviraje

                                       "मेरी धरोहर"
                                     कविता सुमन-60
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ ?..."

                        "रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ ?..."   
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दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आये क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये क्यूँ?

दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्तां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यूँ?

क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म असल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाये क्यूँ?

जब वोह जमाल-ए-दिल-फरोज़, सूरत-ए-मेहर-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़, परदे में मुंह छुपाये क्यूँ?

दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँसितां, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख सही, सामने तेरे आये क्यूँ?

ग़ालिब-ए-खस्ता के बगैर, कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्यूँ? कीजिये हाय हाय क्यूँ?

दैरः मंदिर
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--मिर्ज़ा ग़ालिब
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--yashoda Agrawal
(Thursday, November 14, 2013)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.02.2023-शुक्रवार.
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