साहित्यशिल्पी-तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !

Started by Atul Kaviraje, February 10, 2023, 10:38:55 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !"

          तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !- [आलेख]- ललित गर्ग--
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     धुंधलेपन की परतें कितनी गहरी हैं, सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि स्वतन्त्र भारत में हम किस तरह किसी भी व्यक्ति को आजादी का जश्न मनाने से रोक सकते हैं और किसी भी राज्य की सरकार किस तरह किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले ध्वजारोहण पर आपत्ति कर सकती है। लेकिन ऐसा हुआ और ऐसा होना विडम्बनापूर्ण ही कहा जायेगा। केरल की माक्र्सवादी पार्टी की सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत द्वारा पलक्कड के एक विद्यालय में 15 अगस्त पर झंडा फहराने का विरोध किया और इस जिले के जिलाधीश ने उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा। इसकी परवाह श्री भागवत ने नहीं की और नियत कार्यक्रम के अनुसार तिरंगा फहराया। 19 साल पहले भी 26 जनवरी को बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने श्रीनगर जाकर सेना के घेरे में लाल चैक पर तिरंगा फहराया था। ऐसा करके भागवत या जोशी ने किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया क्योंकि स्वतन्त्र देश भारत के किसी भी स्थान पर 15 अगस्त को तिरंगा फहराने से तब तक कोई भी सरकार किसी को नहीं रोक सकती जब तक कि सार्वजनिक जीवन खतरे में पड़ जाने का डर न हो। श्री भागवत के केरल की धरती पर जाने से ऐसा कुछ भी होने का अन्देशा नहीं था जिसका प्रमाण उनके कार्यक्रम के सम्पन्न हो जाने से भी मिला मगर इस मामले से यह साबित हो गया कि केरल में माक्र्सवादी अजीब असुरक्षा की भावना से भर गये हैं। यह जनजीवन की नहीं, बल्कि राजनीति की असुरक्षा की भावना है। इस तरह की स्थितियां इसलिये उत्पन्न हो रही है कि हमारे देश में सब कुछ बनने लगा पर राष्ट्रीय चरित्र नहीं बना और बिन चरित्र सब सून है। मनुष्य के जीवन में मजबूरियां तब आती हैं, जब उसके सामने कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ने की तुलनात्मक स्थिति आती है। यही क्षण होता है जब हमारा कत्र्तव्य कुर्बानी मांगता है। ऐसी स्थिति झांसी की रानी, भगतसिंह से लेकर अनेक शहीदों के सामने थी। नये दौर में मोहन भागवत एवं मुरलीमनोहर जोशी के सामने भी आयी तो उन्होंने मातृभूमि की माटी के लिए समझौता नहीं किया। कत्र्तव्य और कुर्बानी को हाशिये के इधर और उधर नहीं रखा।

     जब भागवत केरल में स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के लिये गये तो वहां के मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन उनके स्वागत को तत्पर होते, स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते और केरल में प्रेम व भाईचारा बढ़ाने की कामना करते। उल्टा उन्होंने विरोध प्रदर्शित करने की स्थितियां बना दी, अलोकतांत्रिक वातावरण बना दिया। जबकि लोकतंत्र हमें यही तो सिखाता है कि अपने राजनीतिक या वैचारिक प्रतिद्वन्द्वी को भी समुचित सम्मान दो। यह सिद्धान्त दोनों ही पक्षों पर समान रूप से लागू होता है। इसी प्रकार श्री विजयन या उनकी पार्टी के कोई दूसरे नेता जब किसी भाजपा शासित राज्य में जायें तो उनके कार्यक्रमों को समुचित सम्मान मिले। ऐसी सौहार्दपूर्ण स्थितियों को निर्मित करके ही हम लोकतंत्र को मजबूत कर सकेंगे और आजादी के वास्तविक उद्देश्यों को पा सकेंगे।

--ललित गर्ग
मौसम विहार, दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.02.2023-शुक्रवार.
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