इतर कविता-(क्रमांक-133)-असा मी.. तसा मी.. कसा मी कळेना

Started by Atul Kaviraje, February 10, 2023, 10:58:50 PM

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Atul Kaviraje

                                     इतर कविता 
                                   (क्रमांक-133)
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     "इतर  कविता" अंतर्गत  मी  इतर  कवींच्या  कविता  आपणापुढे  सादर  करीत आहे .

                             असा मी.. तसा मी.. कसा मी कळेना
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कधी येतसे क्षुद्रता कस्पटाची;
कधी वाढता वाढता व्योम व्यापी
कधी धावतो विश्व चुंबावयाला
कधी आपणाला स्वहस्तेच शापी
कधी याचितो सत कधी स्वप्न याची
कधी धावतो काळ टाकुन मागे
कधी वर्षतो अमृताच्या सरी अन
कधी मृत्युच्यी भाबडी भीक मागे
कधी दैन्यवाणा, निराधर होई
कधी गुढ, गंभीर, आत्मप्रकाशी
कधी गर्जतो सागराच्या बळाने;
कधी कापतो बोलता आपणाशी!
कधी आपणा सर्व पिंडात शोधी;
कधी पाहतो आत्मरुपात सारे;
कधी मोजीतो आपणाला अनंते
अणुरुप होती जिथे सुर्य, तारे
टळेना अहंकार साध्या कृतीचा;
गळेना महापुच्छ स्वार्थी स्मृतीचे;
कधी घेतसे सोंग ते सत्य वाटे!
कधी सत्य ते वाटते सोंग साचे!
कधी संयमी, संशयात्मा, विरागी
कधी आततायी, कधी मत्तकामी
असा मी.. तसा मी.. कसा मी कळेना;
स्वतःच्या घरी दुरचा पाहुणा मी!

– विंदा करंदीकर
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--संकलक-सुजित बालवडकर
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                 (साभार आणि सौजन्य-मराठी कविता.वर्डप्रेस.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.02.2023-शुक्रवार.
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