मेरी धरोहर-कविता सुमन-64-बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के...

Started by Atul Kaviraje, February 14, 2023, 10:28:10 PM

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Atul Kaviraje

                                    "मेरी धरोहर"
                                  कविता सुमन-64
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "ये बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के..."

                              "बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के..."   
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जी भर रोकर जी हल्का हो जाता है
वरना तन-मन जलथल सा हो जाता है

हर ज़र्रे को रोशन करके आख़िर में
शाम ढले सूरज बूढ़ा हो जाता है

बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के
बस आँगन टुकड़ा टुकड़ा हो जाता है

जाहिल जब बैठेंगे आलिम के दर पे
हश्र यक़ीनन ही बरपा हो जाता है

उल्फ़त का सागर हूँ, नफ़रत का दरिया
मिलकर मुझसे मुझ जैसा हो जाता है

'पल्टू साहब' की बानी है भूखों को
भोजन दो तो पूजा सा हो जाता है

रफ़्ता रफ़्ता सब उम्मीदें मरती हैं
'धीरे धीरे सब सहरा हो जाता हैं'

(पल्टू साहब-जलालपुर के प्रसिद्ध संत)
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--अनिल जलालपुरी
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--yashoda Agrawal
(Monday, November 11, 2013)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.02.2023-मंगळवार.
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