मेरी धरोहर-कविता सुमन-66-शबे-तन्हाई में चमका न करो...

Started by Atul Kaviraje, February 16, 2023, 10:31:31 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-66
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- " शबे-तन्हाई में चमका न करो..."

                              "शबे-तन्हाई में चमका न करो..."   
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बात बेबात की बातों में तो पैदा न करो
चोट पर चोट न दो ज़ख्म को गहरा न करो

हम ग़रीबों के मकानात टपकते हैं बहुत
बादलो खेत पे बरसो यहां बरसा न करो

जिस्म पर इसके ज़रूरी है दरख्तों का लिबास
काट कर पेड़ मिरे देश को नंगा न करो

देखने को तुम्हें आ जाते हैं बाहर आंसू
ऐ सितारो ! शबे-तन्हाई में चमका न करो

रंगो-ख़ुशबू से ज़माने को अदावत है बहुत
ऐ गुलो इस तरह गुलज़ार में महका न करो

आदमी ही नहीं इस शहरे-सितमगर में 'शफ़ीक़'
तुम दरख्तों से भी साये की तमन्ना न करो

--शफ़ीक़ रायपुरी
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--yashoda Agrawal
(Thursday, November 07, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.02.2023-गुरुवार.
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