II छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती II-कविता-1

Started by Atul Kaviraje, February 19, 2023, 10:59:48 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                             II छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती II
                            ---------------------------------

मित्रो,

     आज दिनांक-१९.०२.२०२३-रविवार है I छत्रपती शिवाजी महाराज की आज तारीखवार जयंती है I छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्र) में हुआ  था। शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजाबाई थी।  वे एक भारतीय शासक थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवीर और दयालु शासक थे। इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन कवी-कवयित्रियोंको छत्रपती शिवाजी महाराज जयंती की हार्दिक शुभकामनाये I आईए, पढते है, शिवाजी महाराज की कुछ कविताये-रचनाये--

शिवाजी महाराज पर कविता--

     महान हिंदी कवि भारत भूषण अग्रगन्य जो जीवनकाल के दौरान कई राजे-महाराजो के शासन काल में रहे.

     इस ब्रज भाषी कवि को महान हिन्दू क्षत्रिय और मराठा सेनापति महाराज शिवाजी और छत्रसाल महाराज के प्रश्रय में रहने का अवसर मिला, उनकी अधिकतर रचनाएँ अपनी स्वामिभक्ति पर आधारित हैं,

जो इन दो महान वीरो के जीवन पर लिखी गईं हैं. इस लेख में आपकों शिवाजी महाराज कविता और छत्रसाल पर लिखी कविताओं का अर्थ सहित ब्यौरा दिया जा रहा हैं.

(शिवाजी का शोर्य)--

=========================================
ऊँचे घोर मन्दंन के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मन्दर के अंदर रहाती हैं |
कंदमूल भोग करे, कन्दमूल भोग करे,
तीन बेर खाती ते वै तीन बैर खाती हैं |
भूषन सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
बिजन डुलाती ते बे बिजन डुलाती हैं |
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रस्त,
नग्न जड़ाती ते वे नगन जड़ाती हैं |
गडन गुंजाय गधधारण सजाय करि,
छाडि केते धरम दुवार दे भिखारी से. |
साहि के सपूत पूत वीर शिवराजसिंह,
केते गढ़धारी किये वनचारी से |
भूषण बखाने केते दीन्हे बन्दीखानेसेख,
सैयद हजारी गहे रैयत बजारी से |
महतो से मुंगल महाजन से महाराज,
डांडी लीन्हे पकरि पठान पटवारी से |

दुग्ग पर दुग्ग जीते सरजा सिवाजी गाजी,
उग्ग नाचे उग्ग पर रुण्ड मुँह फरके |
भूषण भनत बाजे जीती के नगारे भारे,
सारे करनाटी भूप सिहल लौं सरके ||
.मारे सुनि सुभट पनारेवारे उदभट,
तारे लागे फिरन सितारे गढ़धर के |
बीजापुर बीरन के, गोकुंडा धीरन के,
दिल्ली उर मीरन के दाड़िम से दरके ||
अंदर ते निकसी न मन्दिर को देख्यो द्वार,
बिन रथ पथ ते उघारे पाँव जाती हैं |
हवा हु न लागती ते हवा तो बिहाल भई,
लाखन की भीरी में स्म्हारती न छाती हैं. ||

भूषण भनत सिवराज तेरी धाक सुनि,
हयादारी चीर फारी मन झुझ्लाती हैं |
ऐसी परी नरम हरम बादशाहन की,
नासपाती खाती तै वनासपाती खाती हैं ||
बेद राखे विदित पुरान परसिध राखे,
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर में ||
हिन्दुन की चोटी रोटी राखी हैं सिपहीन की,
काँधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर में |
मिडी राखे मुग़ल मरोड़ी राखे पातसाही,
बैरी पिसी राखे बरदान राख्यो कर में ||
राजन की हद राखी तेगबल सिवराज,
देवराखे देवल स्वधर्म राख्यो घर में ||
=========================================

शिवाजी महाराज कविता हिंदी अर्थ (Hindi Meaning of Shivaji Maharaj Poem)--

     कवि भूषण कहते हैं , शत्रु पक्ष की स्त्रियाँ जो बड़े-बड़े भवनों में रहा करती थी. वे अब शिवाजी के भय से भवन छोड़कर कंदराओ में जा रही हैं. शत्रु दल की स्त्रियाँ पहले जो मेवा मिष्ठान खाया करती थी, अब शिवाजी महाराज के डर से पेड़ की जड़े खा रही हैं.

     जिनके पास खाने पीने की चीजों की कमी नही थी, दिन में दिन वक्त खाया करती थी. वे जंगल में रहकर मुश्किल से तीन बैर ही खा रही हैं. जिनके शरीर कीमती आभुशनो से लदे हुआ करते थे, अब भूख से शरीर शिथल हुआ जा रहा हैं.

     जिनके ऊपर पवन के लिए पंखे ढुलाए जाते थे, अब अपनी रक्षा के लिए निर्जन वनों में घूम रही हैं. हे शिवाजी, जो स्त्रियाँ नगों से जटित आभूषण पहना करती थी. वे तुम्हारे भय से नग्नावस्था में ठंड से कंपकपा रही हैं.

                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-ही हिंदी.कॉम)
                       ------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.02.2023-रविवार.
=========================================