मेरी धरोहर-कविता सुमन-70-चांदी-सा पानी सोना हो जाता है...

Started by Atul Kaviraje, February 20, 2023, 10:03:14 PM

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Atul Kaviraje

                                    "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-70
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- " चांदी-सा पानी सोना हो जाता है..."

                            "चांदी-सा पानी सोना हो जाता है..."   
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तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है

नींद को बेदारी का बोसा मिलते ही
हरा-भरा सपना पीला हो जाता है

अक्स उभरता है इक पहले आँखों में
फिर सारा मंज़र धुँधला हो जाता है

नाचने लगती हैं जब किरनों की परियाँ
चांदी-सा पानी सोना हो जाता है

...तो पलकों से ओस टपकने लगती है
शाम का सुरमा जब तीखा हो जाता है

चुभने लगता है सूरज की आँख में जो
वो दरिया इक दिन सहरा हो जाता है

अब तो ये नुस्ख़ा भी काम नहीं करता-
रो लेने से जी हल्का हो जाता है

दीवारों से बातें करने लगता हूँ
बैठे-बैठे मुझको क्या हो जाता है

ठीक कहा था उस मस्ताने जोगी ने
" धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है "

--आलोक मिश्रा
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--yashoda Agrawal
(Wednesday, October 23, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.02.2023-सोमवार. 
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