मेरी धरोहर-कविता सुमन-79-अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने...

Started by Atul Kaviraje, March 01, 2023, 09:38:16 PM

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Atul Kaviraje

                                       "मेरी धरोहर"
                                     कविता सुमन-79
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने..."

                            "अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने..."   
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अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने
मैंने भी झूठ कह दिया झूठों के सामने

एक पट्टी बाँध रक्खी है मुंसिफ ने आँख पर
चिल्लाते हुए गूंगे हैं बहरों के सामने

मुझको मेरे उसूलों का कुछ तो बनाके दो
खाली ही हाथ जाऊं क्या बच्चों के सामने

एक वक़्त तक तो भूख को बर्दाश्त भी किया
फिर यूँ हुआ वो बिछ गयी भूखों के सामने

वो रौब और वो हुक्म गए बेटियों के साथ
खामोश बैठे रहते हैं बेटों के सामने

मुद्दत में आज गाँव हमें याद आया है
थाली लगा के बैठे हैं चूल्हों के सामने 

--सचिन अग्रवाल
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--yashoda Agrawal
(Monday, October 14, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.03.2023-बुधवार.
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