साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 17

Started by Atul Kaviraje, March 02, 2023, 10:26:00 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
                                     ---------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 17 झारानंदपुरीन और हिरमराज"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 17 झारानंदपुरीन और हिरमराज - [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
------------------------------------------------------------------------

     मंदिर से बाहर निकल कर दाहिनी ओर के अहाते पर पहुँचा वहाँ मुझे पुरातात्विक महत्व का एक द्वारपट्ट दिखाई पड़ा। इस द्वारपट्ट के मध्य में पद्मासन में एक योगी दिखाई पडता है जिसना एक हाथ अभय मुद्रा में है। योगी के सिर के पीछे बनाया गया आभामण्डल भी साफ दिखाई पडता है। शेष दो पुरुष-आकृतियों को विश्राम मुद्रा में दाहिना पैर उपर की ओर उठाये एवं बायें पैर मोडे हुए बैठे देखा जा सकता है। तीनों की पुरुष आकृतियों के मुख वाले हिस्से इस तरह टूटे हुए हैं जैसे किसी ने जान-बूझ कर इन्हें नष्ट किया हो। इसके साथ ही मुझे बनावट एवं सज्जा से एक हलका सा अनुमान इस द्वारपट्ट के बौद्ध मान्यताओं से जुडे होने का भी लगता है, तथापि बुरी तरह खण्डित होने के कारण बहुत यकीन से कुछ भी कहना उचित नहीं।

     मंदिर के पृष्ठ भाग में एक प्रस्तर खम्ब लगा हुआ है जो किसी प्राचीन भवन संरचना का हिस्सा ही ज्ञात होता है। मुझे बताया गया कि उपर पहाड़ी पर हिरमराज का स्थान है और उनके प्रतिनिधि आंगा वहीं पर स्थापित हैं। देवी झारानंदपुरीन के पुजारी ही हिरमराज के भी प्रधान पुजारी हैं। झारानंदपुरीन तथा हिरमराज पर सात गाँवों की प्रधान रूप से आस्था है जिसमें समलूर, बिंजाम, चितालंका, बालपेट, टेकनार, बुधपदर तथा कसोली आते हैं। प्रतिवर्ष मई माह में हिरमराज के लिये जात्रा आयोजित होती है जिस अवसर पर लोग उस पहाड़ी पर एकत्रित होते हैं जहाँ आंगा स्थापित किया गया है। मैंने कोशिश अवश्य की थी कि हिरमराज तक इसी यात्रा में पहुँचा जा सके लेकिन बारिश के कारण बहुत अधिक सघन हो गयी झाडियों और कठिन रास्तों के कारण आगे जाना संभव नहीं हो सका। हिरमराज की वर्ष भर पूजा यहीं झारानंदपुरीन देवी के मंदिर में ही होती है, इस दृष्टिकोण से यह छोटा सा मंदिर बड़े महत्व का माना जा सकता है। संदर्भ के लिये उल्लेख करना चाहूंगा कि बारसूर के निकट एक पहाड़ी पर एक पुरातात्विक महत्व का मंदिर स्थित है जिसकी खण्डित प्रतिमा पहाड़ी तलहटी के नीचे की ओर रखी हुई है। इस प्रतिमा को भी हिरमराज ही सम्बोधित किया जाता है एवं नगर के रक्षक के रूप में उन्हें मान्यता मिली हुई है।

--राजीव रंजन प्रसाद
------------------

                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                     -----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-02.03.2023-गुरुवार.
=========================================