मेरी धरोहर-कविता सुमन-81-अनकही ही रह गयी वोह बात...

Started by Atul Kaviraje, March 03, 2023, 10:19:07 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-81
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "अनकही ही रह गयी वोह बात..."

                            "अनकही ही रह गयी वोह बात..."   
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हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुलाकातों के बाद
फिर बनेंगे आशना* कितनी मुदारातों के बाद
[*acquainted, friendly]
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

थे बोहत बे-दर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थीं बोहत बे-मेहर सुबहें मेहरबां रातों के बाद

दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद

उनसे जो कहने गए थे फैज़ जान सदके किये
अनकही ही रह गयी वोह बात सब बातों के बाद

--फैज़ अहमद फैज़
सौजन्यः बेस्ट ग़ज़ल.नेट
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--yashoda Agrawal
(Sunday, October 13, 2013)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.03.2023-शुक्रवार.
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