साहित्यशिल्पी- बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 16

Started by Atul Kaviraje, March 03, 2023, 10:27:56 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 16 वीराने में ब्रम्हा का मंदिर"

  बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 16 वीराने में ब्रम्हा का मंदिर- [यात्रा वृतांत] -
  राजीव रंजन प्रसाद--
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     जो अविश्वसनीय और अकल्पनीय हो वह बस्तर में अवश्य संभव होता है। माना जाता है कि ब्रम्हाजी का मंदिर भारत में केवल पुष्कर में ही अवस्थित है, संभवत: इसीलिये बीजापुर जिले के छोटे से गाँव मिरतुर के बाहरी छोर पर एक पेड़ के नीचे पुरातात्विक महत्व की ब्रम्ह देव की प्रतिमा अन्य अनेक प्रतिमाओं के साथ प्राप्त हुई है। ब्रम्हाजी की प्रतिमा का मिलना इतना महत्व का समझा गया कि उन्हें अन्य प्राप्त अवशेषों से अधिक प्राथमिकता दी गयी है। यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि प्रतिमा के तौर पर सृष्टि के निर्माता माने जाने वाले ब्रम्हा की अनेक एकलमूर्तियाँ देश में अन्यत्र भी मिलती हैं उदाहरण के लिये कर्नाटक के सोमनाथपुरा में बारहवीं शताब्दी के चेनाकेस्वा मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति। अनेक देवस्थानों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश की एक साथ प्रतिमायें प्राप्त होती हैं और मिरतुर में भी वही वस्तुस्थिति है। मिरतुर में प्राप्त प्रतिमाओं के पृष्ठ भाग में एक लाल रंग का परिचय बोर्ड लगा हुआ है जिसमे खोजकर्ता के रूप में भैरमगढ में तहसीलदार के पद पर पदस्थ रहे रामविजय शर्मा का नाम उल्लेखित है, साथ ही मंदिर के पुजारी बैसाखू राउत का नाम भी बोर्ड पर लिखा गया है। इस बोर्ड पर ही बहुत बडे बडे अक्षरों में लिखा हुआ है ब्रम्हाजी का मंदिर।

     यह स्थान मंदिर होने की कोई आहर्ता पूरी नहीं करता। एक विशाल वटवृक्ष के नीचे क्रमश: अनेक प्रतिमायें खुले में एक चबूतरे के उपर रखी हुई हैं। पहली प्रस्तर पट्टिका सप्तमातृकाओं की है जो आंशिक खण्डित है। इस पट्टिका में छ: मातृकायें एवं गणेश ही दृष्टिगोचर होते हैं। इसके पश्चात क्रमश: ब्रम्हा विष्णु तथा महेश की प्रतिमायें है जिससे लग कर एक घुडसवार योद्धा की प्रतिमा है। योद्धा के हाथ में भाला है किन्तु उसका शीष खण्डित है। इसके साथ ही लग कर दोनो हाथों में कमल थामे सूर्य प्रतिमा रखी हुई है। सामने की ओर लगभग खण्डित अवस्था में एक अलंकृत नंदी को भी देखा जा सकता है। इन सबको सम्मिलित रूप से देखने पर इस स्थान को केवल ब्रम्हाजी का मंदिर कहना सही व्याख्या नहीं लगती। यहाँ स्थित ब्रम्हा विष्णु तथा शिव की प्रतिमायें समान आकार-प्रकार ही हैं एवं एक ही शैलीगत स्मानता के साथ उनका निर्माण हुआ है। यह सहज अनुमान लग जाता है कि वे किसी ऐसे मंदिर का हिस्सा हैं जहाँ एक साथ ही ब्रम्हा-विष्णु-महेश की इन प्रस्तराकृतियों को एक साथ ही रखा गया था। बहुत कम प्रतिमायें अथवा मंदिर देश में होने की मान्यताओं के कारण इस स्थान की ख्याति को विशेषरूप से खोजकर्ताओं द्वारा ब्रम्हाजी का मंदिर कह कर प्रचारित किया गया है।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.03.2023-शुक्रवार.
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