मेरी धरोहर-कविता सुमन-82-मैं बड़े दुखी की पुकार हूं...

Started by Atul Kaviraje, March 04, 2023, 10:21:20 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-82
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "मैं बड़े दुखी की पुकार हूं..."

                              "मैं बड़े दुखी की पुकार हूं..."   
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ना किसी की आंख का नूर हूं ना किसी के दिल का क़रार हूं
जो किसी के काम ना आ सके मैं वो मुश्त-ए-ग़ुबार हूं

मैं नहीं हूं नग़्म-ए-जां-फ़िज़ा, मुझे कोई सुन के करेगा क्या
मैं बड़े बिरोग की हूं सदा, मैं बड़े दुखी की पुकार हूं

मेर रंग रूप बिगड़ गया, मेरा बख़्त मुझसे बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ले बहार हूं

पै फ़ातेहा कोई आए क्यूं, कोई चार फूल चढ़ाए क्यूं
कोई शमा ला के जलाए क्यूं कि मैं बेकसी का मज़ार हूं

ना मैं मुज़तर उनका हबीब हूं, ना मैं मुज़तर उनका रक़ीब हूं
जो पलट गया वह नसीब हूं जो उजड़ गया वह दयार हूं

-मुज़तर ख़ैराबादी
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मरहूम श़ायर ज़नाब मुज़तर ख़ैराबादी [1865-1927]
शायर जनाब जाँनिसार अख़्तर के वालिद थे.
और ज़नाब ज़ावेद अख़्तर के दादा हूज़ूर थे.
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--yashoda Agrawal
(Friday, October 11, 2013)
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                   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.03.2023-शनिवार.
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