ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन-यादगार सफर का सच...

Started by Atul Kaviraje, March 06, 2023, 10:43:55 PM

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Atul Kaviraje

                              "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन" इस ब्लॉग के अंतर्गत, एक लेख/कविता.

                                  यादगार सफर का सच...
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     हमारी गाड़ी रुकते ही शास्त्री जी खुद बाहर आ गए, बड़े ही आदर के साथ हम लोगों से मिले और हम सब उनके निवास परिसर में ही बने उनके आफिस में चले गए। दो मिनट के सामान्य परिचय के बाद लगा ही नहीं कि हम शास्त्री जी से पहली बार मिल रहे हैं। यहां मैं शास्त्री जी से माफी मांगते हुए मैं एक बात का जिक्र करना चाहता हूं कि मेरे मन मे शास्त्री जी की जो तस्वीर थी, ये उसके बिल्कुल उलट थे। मुझे लगता था कि बुजुर्ग शास्त्री जी आराम कुर्सी पर बैठे होंगे, उनका कम्प्यूटर आपरेटर उनकी बातों को कंपोज करने के बाद ब्लाग पर डालता होगा..। लेकिन ऐसा कुछ नहीं, शास्त्री जी खुद कम्प्यूटर की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। मैं उनके साथ बैठा, उन्होंने तुरंत मेरा ब्लाग खोला, ब्लाग खोलने में कुछ दिक्कत आई।

     शास्त्री जी ने खुद ही देखा कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत हो सकती है। उन्होंने तीन मिनट में ब्लाग की दिक्कतों को समझ लियाऔर अगले ही पल उसे दुरुस्त भी कर दिया। ब्लाग का डिजाइन बहुत ही साधारण देख उन्होंने खुद ही कहा कि चलिए इसे कुछ आकर्षक बनाते हैं। ब्लाग के बारे में दो एक बातें करने के बाद उन्होंने देखते ही देखते मेरे ब्लाग को बिल्कुल अपडेट कर दिया। मैं उनके कम्प्यूटर के प्रति प्रेम और जानकारी को देखकर हैरान था, सच बताऊं तो उन्होंने इसकी तकनीक से जुड़ी दो एक बातों के बारे में मुझसे पूछा तो मैं बगलें झांकने लगा।

     बहरहाल एक घंटे की मुलाकात में मैं समझ चुका था कि शास्त्री ने जो अपना जो परिचय ब्लाग के पृष्ठ पर डाला है, वो उनका पूरा परिचय नहीं है, सच कहूं तो आधा भी नहीं । शास्त्री जी वो व्यक्तित्व हैं, जिन्हें लगता है कि लोग उनसे जितना कुछ हासिल कर सकते हैं कर लें. वो अपना पूरा ज्ञान और अनुभव युवाओं पर लुटाने को तैयार बैठे हैं, लेकिन हम उनसे सीखना ही नहीं चाहते। मेरी छोटी सी मुलाकात के दौरान मैने महसूस किया कि वो चाहते हैं कि हमे कितना कुछ हमें दे दें, लेकिन जब हम लेने को ही तैयार नहीं होंगे तो भला वो क्या कर सकते हैं।

     सच बात तो ये है कि उनके पास से उठने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था, पर समय और ज्यादा देर तक बैठने की इजाजत भी नहीं दे रहा था, क्योंकि पहाड़ों में शाम जल्दी हो जाती है, और शाम होते ही हमारा काम बंद हो जाता है, यानि कैमरे भी आंखें मूंद लेते हैं। इसलिए मुझे बहुत ही बेमन से कहना पडा कि शास्त्री जी अब मुझे जाना होगा। मैने महसूस किया कि शास्त्री जी का भी मन नहीं भरा था बात चीत से, वो भी चाहते थे कि हम थोड़ी देर और बातें करें, लेकिन मैने यह कह कर कि वापसी में मैं एक बार फिर आपसे मिलकर ही जाऊंगा, लिहाजा हम दोनों लोग कुछ सामान्य हुए।

     हम तो चलने के लिए उठ खड़े हुए, लेकिन शास्त्री जी ये सोचते रहे कि कुछ देना अभी बाकी रह गया है, उन्होंने मुझे रोका और अपनी लिखी दो पुस्तकें मुझे भेंट कीं। सच तो ये है कि शास्त्री जी से मुलाकात की कुछ निशानी मैं भी चाहता था, लेकिन मांगने की हिम्मत भला कैसे कर सकता था, पर शस्त्री जी इसीलिए आदरणीय हैं कि वो लोगों के मन की बात को भी पढना जानते हैं। बहरहाल इस यादगार मुलाकात के हर क्षण को मैं खूबसूरती से जीना चाहता हूं।

--महेन्द्र श्रीवास्तव
(मंगलवार, 29 नवंबर 2011)
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   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-allindiabloggersassociation.blogspot.com)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.03.2023-सोमवार.
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