भारत डिस्कव्हरी-अंडमान द्वीपसमूह

Started by Atul Kaviraje, March 06, 2023, 10:53:26 PM

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Atul Kaviraje

                                    "भारत डिस्कव्हरी"
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मित्रो,

     "भारत डिस्कव्हरी" विषया-अंतर्गत, आज पढेंगे "इतिहास-कोश" इस श्रेणी-अंतर्गत एक इतिहास लेख. इस लेख का शीर्षक है- अंडमान द्वीपसमूह.

                                   "अंडमान द्वीपसमूह"
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                 प्राचीन निवासी तथा उनका स्वभाव--

     अंडमान के प्राचीन निवासी असभ्य थे, जिसके फलस्वरूप यहाँ की सभ्यता बहुत ही पिछड़ी हुई है। सन्‌ 851 के अरबी लेखों में इन लोगों को नरभक्षक बताया गया है, जो जहाजों को ध्वंस किया करते थे। परंतु यह पूर्णरूपेण सत्य नहीं है। यहाँ के आदिवासी हँसमुख, उत्साही तथा क्रीड़ाप्रिय प्रकृति के हैं। परंतु क्रुद्ध हो जाने पर भयंकर रूप धारण कर लेते हैं और सब प्रकार के कुकृत्य करने पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए इन पर विश्वास करना बहुत ही कठिन है। वैज्ञानिकों का मत है कि ये संभवत वामन (पिगमी) जाति के वंशज हैं, जो कभी एशिया के दक्षिणी पूर्वी भागों तथा उसके बाहरी टापुओं में बसी थी। यद्यपि अंडमान के आदिवासी सब एक ही वंश के हैं, तथापि इनमें कई जातियाँ तथा उपजातियाँ पाई जाती हैं, जिनकी भाषाएँ, रहन-सहन, निवास स्थान ताथ आदतें भिन्न-भिन्न हैं। भूत-प्रेत आदि पर इनका विश्वास है और इनकी धारणा है कि मनुष्य मरने के पश्चात्‌ भूत हो जाते हैं। इनका प्रधान अस्त्र तीर धनुष है। ये अपना स्थान छोड़कर कहीं नहीं जाते। नक्षत्रादि से दिशा निर्णय करने का ज्ञान संभवत इनमें नहीं है। इनके बाल चमकदार, काले तथा घुंघराले होते हैं। पुरुषों का शरीर सुंदर, सुगठित तथा बलिष्ठ होता है, परंतु नारियाँ उतनी सुंदर नहीं होतीं। विवाहादि भी इनमें निर्धारित नियमों के अनुसार संपन्न होते हैं।

                    ब्रिटिशकालीन क़ैद स्थान--

     अंडमान अंग्रेज़ों के समय में भारतीय कैदियों के आजीवन या दीर्घकालीन कारावास का स्थान था। भारतीय दंड विधान के अनुसार इन कैदियों के देश निष्कासन की आज्ञा रहती थी। सन्‌ 1857 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम प्रयास के बाद से अंडमान भेजे जाने वाले कैदियों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई। सन्‌ 1872 में वाइसराय लार्ड मेयो का, जब वे अंडमान देखने गए हुए थे, निधन हुआ। इस घटना से अंग्रेज़ों के हृदय में एक गहरी छाप पड़ गई। अंग्रेज़ों के समय में यहाँ कैदियों के बसाने की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। यहाँ की रक्षा के हेतु सेनाएँ भी रखी जाती थीं। भारत के स्वतंत्र होने के पूर्व यहाँ की समस्त व्यवस्था अंग्रेज़ अफसरों द्वारा होती थी। जिन कैदियों का जीवन उचित ढंग का प्रतीत होता था उन्हें 20-25 वर्ष बाद छोड़ भी दिया जाता था। 1921 से आजीवन कारावास का दंड उठा दिया गया है। तब से यहाँ के कैदियों की संख्या घटती गई। द्वितीय महायुद्ध में यह जापान द्वारा अधिकृत हो गया था (1942) और युद्ध समाप्त होने तक उसी के अधिकार में रहा।

                    जनसंख्या--

     1971 ई. में अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की अनुमति जनसंख्या 1,15,090 थी। सारे द्वीपों में सबसे घनी आबादी पोर्ट ब्लेयर में है। इसका कारण यह है कि पुराने समय से ही पोर्ट ब्लेयर को केंद्र मानकर अंडमान की नई आबादी बसनी शुरू हुई थी। भारत के साथ अंडमान का संबंध यहाँ की साप्ताहिक डाक तथा बेतार द्वारा भली-भाँति स्थापित है।

--भारत डिस्कव्हरी
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-भारत डिस्कव्हरी.org)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.03.2023-सोमवार.
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