साहित्यशिल्पी-बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 14

Started by Atul Kaviraje, March 07, 2023, 10:37:11 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 14 तो इस तरह नक्सलियों ने गढा आधार इलाका"

बस्तर यात्रा वृतांत श्रंखला, आलेख - 14 तो इस तरह नक्सलियों ने गढा आधार इलाका - [यात्रा वृतांत] - राजीव रंजन प्रसाद--
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     उसूर से आगे बढते हुए मैंने दो गाँव अपने अध्ययन के लिये चुने थे – मारूढबाका तथा गलगम। मुझे निराशा थी जब जानकारी प्राप्त हुई कि आगे किसी भी चार-पहिया वाहन से जाना संभव नहीं है। एक दो दिनों से हल्की बारिश भी हो रही थी अत: जंगल भीगा हुआ था और बाईक से आगे बढने का एकमात्र विकल्प मेरे पास था। साथियों ने उसूर से ही बाईक की व्यवथा की लेकिन हमें बता दिया गया कि कितना भी प्रयास कर लें किंतु दस किलोमीटर से आगे बढना संभव नहीं हो सकेगा, भीतर दादा लोगों की दुनियाँ है। आधार इलाका शब्द मुझे हमेशा ही विवेचना योग्य लगा है। माओवादियों ने भारत के विभिन्न राज्यों में किसी न किसी तरह से अपनी सक्रियता बनाये रखी है जिसे प्राय: गुरिल्लाजोन के रूप में पारिभाषित किया जाता है। एक विशिष्ठ आधार इलाके अर्थात गुरिल्लाबेस की उनकी संकल्पना बस्तर के ही कतिपय क्षेत्रों में जा कर पूरी होती है। गुरिल्लाजोन और गुरिल्ला बेस के बीच का फर्क केवल शाब्दिक नहीं है, गुरिल्ला जोन को माओवाद प्रभावित इलाका कह सकते हैं अर्थात वह क्षेत्र जहां नियन्त्रण के लिए संघर्ष हो रहा है और राज्य अनुपस्थित नहीं है। आम तौर पर माड़ तथा उससे लगा हुआ एक बड़ा क्षेत्रफल केन्द्रीय गरिल्ला बेस अथवा आधार इलाका माना जाता है, इसके अतिरिक्त बस्तर संभाग के बहुतायत सघनवन क्षेत्र गुरिल्ला जोन के अंतर्गत आते हैं।

     मारुढबाका अर्थात लगभग तीस किलोमीटर की बाईक यात्रा। उसूर से जो सड़क जंगल के भीतर जाती हुई प्रतीत हो रही थी वह पर्याप्त चौड़ी थी। मुझे इसी बात का आश्चर्य था कि इतनी अच्छी चौड़ाई की मुरुम डली और रोल की हुई सड़क आखिर परिवहन योग्य क्यों नहीं है? दंतेवाड़ा - कोण्टा सड़क क्या कम दयनीय थी और सैंकड़ों स्थानों से बार बार काटे जाने के बाद भी मुश्किलों से ही सही आवागमन योग्य बनी रही। रानीबोदली - बीजापुर सड़क पर भी हमारी गाड़ी एक ऐसे गड्ढें में फँस गयी थी जिसे मार्ग-बाधित करने के उद्देश्य से नक्सलियों द्वारा ही काटा गया था। यह सब अपनी जगह ठीक है किंतु उसूर से आगे बढते हुए वह कैसी परिस्थितियाँ थीं जिसके विषय में निरंतर आगाह किया जा रहा था। इस रास्ते में आगे बढने पर महज एक किलोमीटर पर ही अहसास हो गया कि आगे तीस किलोमीटर तो दूर की बात है, किसी तरह आठ-दस किलोमीटर भी बढ सके तो उपलब्धि हो जायेगी। आंचलिक जानकारियाँ हासिल करने के पश्चात मैंने निर्णय लिया कि कम से कम नडपल्ली गाँव तक अवश्य पहुँचा जाये, इसके पश्चात ही आगे बढने अथवा लौटने का निश्चय किया जायेगा।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.03.2023-मंगळवार.
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