मेरी धरोहर-कविता सुमन-89-वो मिल जाता है अपने अशआर में...

Started by Atul Kaviraje, March 11, 2023, 10:28:03 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरी धरोहर"
                                    कविता सुमन-89
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "वो मिल जाता है अपने अशआर में..."

                            "वो मिल जाता है अपने अशआर में..."   
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सम्हालो मुझे अब भी घर-बार में
कहीं दिल न लग जाय बाज़ार में

जब अपने मुक़ाबिल हूं तकरार में
ख़ुशी जीत में है न ग़म हार में

अरे मोजिज़ा हो गया आज तो
छपी है ख़बर सच्ची अख़बार में

सज़ा से ख़ता पूछती है ये क्या
बुराई थी इतनी गुनहगार में

गिरेबानो-दामन न हो जांय चाक
उलझ कर न रह जाना दस्तार में

क़लम के सिपाही का डर था कभी
क़लम की भी गिनती थी हथियार में

फ़रिश्ता नहीं एक इंसान हूं
कई खोट हैं मेरे किरदार में

ख़मोशी बग़ावत की तम्हीद है
छुपा खौफ़ होता है यलग़ार में

भला इस क़दर तेज़ चलना भी क्या
कि मंज़िल निकल जाय रफ़्तार में

मुलाक़ात 'आज़म' से मुश्किल नहीं
वो मिल जाता है अपने अशआर में

--डॉ मुहम्मद आज़म
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--yashoda Agrawal
(Wednesday, October 02, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.03.2023-शनिवार.
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