दिन-विशेष-लेख-हिंदी पत्रकारिता दिवस

Started by Atul Kaviraje, May 30, 2023, 09:49:37 PM

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Atul Kaviraje

                                  "दिन-विशेष-लेख"
                               "हिंदी पत्रकारिता दिवस"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज दिनांक-30.05.2023-मंगळवार आहे, 30 मे हा दिवस "हिंदी पत्रकारिता दिवस" म्हणूनही ओळखला जातो. वाचूया, तर या दिवसाचे महत्त्व, आजच्या या "दिन-विशेष-लेख" या शीर्षकI-अंतर्गत.

     महाराष्ट्र शासनाने पत्रकार दिन हा ६ जानेवारी रोजी बाळशास्त्री जांभेकर यांच्या जन्मदिनानिमित्त घोषित केला आहे. महाराष्ट्र राज्यात हा दिवस साजरा केला जातो. बाळशास्त्री जांभेकर मराठी भाषेतील आद्य पञकार आहे. यांनी मराठी भाषेतील पहिले वृत्तपत्र दर्पण ६ जानेवारी १८३२ रोजी सुरू केले होते.

           30 मई को क्यों मनाया जाता है हिंदी पत्रकारिता दिवस, जानिए--

     वह 30 मई का ही दिन था, जब देश का पहला हिन्दी अखबार 'उदंत मार्तण्ड' प्रकाशित हुआ। इसी दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवधि में कई समाचार-पत्र शुरू हुए, उनमें से कई बन्द भी हुए, लेकिन उस समय शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन, अब उद्देश्य पत्रकारिता से ज्यादा व्यावसायिक हो गया है।

     उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कोलकाता (तब कलकत्ता) से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। पंडित जुगलकिशोर सुकुल ने इसकी शुरुआत की। उस समय समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकलते थे, किन्तु हिन्दी में कोई समाचार पत्र नहीं निकलता था। पुस्तकाकार में छपने वाले इस पत्र के 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए। ...और करीब डेढ़ साल बाद ही दिसंबर 1827 में इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।

     उस समय बिना किसी मदद के अखबार निकालना लगभग मुश्किल ही था, अत: आर्थिक अभावों के कारण यह पत्र अपने प्रकाशन को नियमित नहीं रख सका। जब इसका प्रकाशन बंद हुआ, तब अंतिम अंक में प्रकाशित पंक्तियां काफी मार्मिक थीं...

     हिंदी प्रिंट पत्रकारिता आज किस मोड़ पर खड़ी है, यह किसी से ‍छिपा हुआ नहीं है। उसे अपनी जमात के लोगों से तो लोहा लेना पड़ रहा है साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियां भी उसके सामने हैं। ऐसे में यह काम और मुश्किल हो जाता है।

     एक बात और...हिंदी पत्रकारिता ने जिस 'शीर्ष' को स्पर्श किया था, वह बात अब कहीं नजर नहीं आती। इसकी तीन वजह हो सकती हैं, पहली अखबारों की अंधी दौड़, दूसरा व्यावसायिक दृष्टिकोण और तीसरी समर्पण की भावना का अभाव। पहले अखबार समाज का दर्पण माने जाते थे, पत्रकारिता मिशन होती थी, लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है।

     इसमें कोई दो मत नहीं कि हिंदी पत्रकारिता में राजेन्द्र माथुर (रज्जू बाबू) और प्रभाष जोशी दो ऐसे संपादक रहे हैं, जिन्होंने अपनी कलम से न केवल अपने अपने अखबारों को शीर्ष पर पहुंचाया, बल्कि अंग्रेजी के नामचीन अखबारों को भी कड़ी टक्कर दी।

     आज वे हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यकाल में हिन्दी पत्रकारिता ने जिस सम्मान को स्पर्श किया, वह अब कहीं देखने को नहीं मिलता। दरअसल, अब के संपादकों की कलम मालिकों के हाथ से चलती। हिन्दी पत्रकारिता आज कहां है, इस पर निश्चित ही गंभीरता से सोच-विचार करने की जरूरत है।

   यहां महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को उद्धृत करना भी समीचीन होगा...

हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी।

                   (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-हिंदी.वेब दुनिया.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.05.2023-मंगळवार.
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