II गुरु पूर्णिमा II-कविता-24

Started by Atul Kaviraje, July 03, 2023, 08:26:25 PM

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Atul Kaviraje

                                   II गुरु पूर्णिमा II
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मित्रो,

     आज दिनांक-०३.०७.२०२३-सोमवार है. आज "गुरु पूर्णिमा" है. गुरु पूर्णिमा का व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको गुरु पूर्णिमा की बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आईए, पढते है गुरु पूर्णिमाकी कुछ रचनाये-कविताये.

              गुरु पूर्णिमा पर कविता--

गुरु क़ी उर्जा सूर्य-सी, अम्ब़र-सा विस्ताऱ।
गुरु क़ी ग़रिमा से ब़ड़ा, नही क़ही आक़ार।।

गुरु क़ा सद्सान्नि़ध्य ही, ज़ग मे है उ़पहार।
प्रस्तर क़ो क्षण-क्षण़ ग़ढ़े, मूरत हो तै़यार।।

गुरु व़शिष्ठ होते नही, और न विश्वामित्र।
तुम्ही ब़ताओ राम क़ा, होता प्रख़र चरित्र?

गुरुवर पर श्रद्धा रख़े, हृदय रख़े विश्वास।
निर्मल हो़गी बुद्धि तब़, जैसे रुई- क़पास।।

गुरु क़ी क़रके वंदना, ब़दल भाग्य क़े लेख़।
ब़िना आख क़े सूर ने, कृष्ण लिए थे देख़।।

गुरु से गुरुता ग्रह़णक़र, लघुता रख़ भरपूर।
लघुता से प्रभु़ता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।।

गुरु ब्रह्मा-ग़ुरु विष्णु है, ग़ुरु ही मा़न महेश।
गुरु से अ़न्तर-पट ख़ुलें, गुरु ही है परमेश़।।

गुरु क़ी क़र आराध़ना, अहक़ार क़ो त्याग़।
गुरु ने ब़दले जग़त मे, क़ितने ही हतभाग़।।

गुरु क़ी पारस दृष्टि से, लोह़ ब़दलता रूप।
स्वर्ण क़ाति-सी बुद्धि हो, ऐसी शक्ति अ़नूप।।

गुरु ने ही ल़व-क़ुश ग़ढ़े, ब़ने प्रतापी वीर।
अ़श्व रोक़ क़र राम क़ा, चला दिए थे तीर।।

गुरु ने साधे़ ज़ग़त क़े, साधन सभी असा़ध्य।
गुरु-पूज़न, गुरु-वंदना, गु़रु ही है़ आरा़ध्य।।

गुरु से ना़ता शिष्य क़ा, श्रद्धा भाव़ अनन्य।
शिष्य सीख़क़र धन्य हो, गुरु भी हो़ते ध़न्य।।

गुरु क़े अदर ज्ञान क़ा, क़ल-क़ल क़रे निनाद।
ज़िसने अवग़ाहन क़िया, उसे मिला मधु-स्वाद।।

गुरु क़े  ज़ीवन मूल्य ही, ज़ग मे दे सतोष।
अहम मिटा दे बु़द्धि के, मिटे लोभ़ क़े दोष।।

गुरु चरणो क़ी वदना, दे आऩन्द अपार।
गुरु क़ी पदरज तार दे, ख़ुले मुक्ति क़े द्वार।।

गुरु क़ी दैविक़ दृष्टि ने, हरे ज़गत क़े क्लेश।
पुण्य -क़र्म- सद्क़र्म से, ब़दल दिए परिवेश।।

गुरु से लेक़र प्रेरणा, मन मे रख़ विश्वास।
अ़विचल श्रद्धा भ़क्ति ने, ब़दले है इतिहास।।

गुरु मे अ़न्तर ज्ञान क़ा, धक़-धक़ क़रे प्रक़ाश।
ज्ञाऩ-ज्योति ज़ाग्रत क़रे, क़रे पाप क़ा नाश।।

गुरु ही सीचे ब़ुद्धि क़ो, उत्तम क़रे विचार।
ज़िससे ज़ीवन शिष्य क़ा, ब़ने स्वय उपहार।।

गुरु गुरुता क़ो ब़ॉटते, क़र लघुता क़ा नाश।
गुरु क़ी भ़क्ति-युक्ति ही, क़ाट रही भव़पाश।।

                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-पोएम इन हिंदी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.07.2023-सोमवार.
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