स्वतंत्रता दिवस-कविता-38

Started by Atul Kaviraje, August 15, 2023, 05:00:14 PM

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Atul Kaviraje


                                    "स्वतंत्रता दिवस"
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मित्रो,

     आज दिनांक १५.०८.२०२३-मंगलवार है. आज भारत का "स्वतंत्रता दिवस" है. सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। लाल किले पर फहराता तिरंगा; स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर फहरते झंडे अनेक इमारतों व स्थानों पर देखे जा सकते हैं। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। यह आज़ादी हमें 200 सालों की यातना, उत्पीड़न, युद्ध और बलिदान के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली. ब्रिटिश कोलोनियल शासन से कड़ी मेहनत से हासिल की गई यह आजादी लोकतंत्र का जश्न है. यह भारत के इतिहास में एक नये युग की शुरुआत का प्रतीक है। दशकों के अथक संघर्ष और बलिदान से सजी स्वतंत्रता की यात्रा कठिन थी। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन कवी-कवयित्रीयोको इस दिन कि बहोत सारी हार्दिक शुभकामनाये. आइये पढते है कुछ कविताये, रचनाये.

हिन्द पताके की शान को लहराया
केसरिया ध्वज को गगन की ऊंचाई तक चुम्हाया
दौ सो वर्षों की गुलामी से स्वतन्त्रता की ओर ले आया
यह जज्बा ही तो था उन जवानों का जिन्होंने
हमें गुलामी के पुतलों से इंसान बनाया

सुनहरे स्वतंत्र कल की उम्मीदों में जिन्होंने अपने आज को संघर्ष बनाया
यह जज्बा ही तो था उन जवानों का जिन्होंने आज वर्चस्व लहराया
देह जिनका शव हुआ वीरों की तरह कट मिटा पर विचार चलता आया
यह जज्बा ही तो है उन जवानों का जिन्होंने खुद से पहले
माँ की लाज को सरमाथे पर लाया

अपने अनुभवों से माँ को उन्होंने बेड़ियों से छुडाया
कठोर बंटवारे से देश को फिर चलना सिखाया
माँ को धर्म जात छूत अछूत काले गोर की
संकीर्णताओं से फिर स्वर्ण चिड़ि बनाकर उड़ाया
जज्बा ही तो है जवानों का जिन्होंने
स्वतंत्रता का सपना साकार करवाया है

गांधी की दांडी सुभाष की हिन्द सेना तक योगदान सबका प्रबल रहा
चरखे से बंटवारे तक हिन्दू मुस्लिम के नारों तक
माँ के बहादुर बेटों का संघर्ष जारी रहा
उनके लहू का कतरा कतरा बह चला
यह जज्बा ही तो था उन जवानों का जिससे
हमें यह स्वतंत्र सुनहरी धूप मिली

उन वीर सेनानियों के बलिदान से ही
वर्तमान का यह भारत बना है
अनेक नारों से मातृत्व की भावना जगी है
इतिहास के तजुर्बे से हमें सीखना है
विद्रोह की स्मृतियाँ को यादों में सहेजना है
हमारे गुरु के दिखाए मार्ग पर चलना है
भारत को एक बार फिर विश्व गुरु बनना है
फिर से सोने की चिड़ियाँ बन उड़ चलना है

--श्रेया चौधरी
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                         (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-एस्से ऑन हिंदी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.08.2023-मंगळवार.   
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