पारसी नव वर्ष-पतेती-निबंध-3

Started by Atul Kaviraje, August 16, 2023, 11:38:40 AM

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Atul Kaviraje

                               "पारसी नव वर्ष-पतेती"
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मित्रो,

     आज दिनांक-१६.०८.२०२३-बुधवार है. आज "पारसी नव वर्ष-पतेती" है. हर साल पारसी न्यू ईयर 21 मार्च और 16 अगस्त को मनाया जाता है। पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज का पर्व आस्था और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। दुनियाभर में पारसी न्यू ईयर 16 अगस्त को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। मराठी कविताके मेरे सभी पारसी भाई-बहनॊ को पतेतीकी बहोत सारी दिली शुभ-कामनाये. आइये पढते है पारसी नव वर्ष पर निबंध.

             पारसी नव वर्ष पर निबंध –

     एक दौर था जब पारसी समाज का एक बड़ा समुदाय हुआ करता था, लेकिन बदलाव के इस दौर ने हमसे हमारे दूर कर दिए। कई ने करियर और बेहतर पढ़ाई के कारण बड़े शहरों की ओर रुख किया, तो कुछ ऐसे भी हैं जो आज भी समाज को जीवित रखे हुए हैं। 19 अगस्त को पारसी समाज का नववर्ष मनाया जाता है। आइए जानते हैं पारसी धर्म और उससे जुड़े कुछ अनछुए पहलू। वक्त ने जिंदगी के कई खट्टे-मीठे अनुभव कराए, लेकिन हमारे संस्कार ही हैं, जिसके दम पर आज भी अपने धर्म और इससे जु़ड़े रीति-रिवाजों को संभाले हुए हैं।

             पारसी धर्म का इतिहास और परंपरा :-

     1380 ईस्वी पूर्व जब ईरान में धर्म परिवर्तन की लहर चली तो कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन जिन्हें यह मंजूर नहीं था वे देश छोड़कर भारत आ गए। यहां आकर उन्होंने अपने धर्म के संस्कारों को आज तक सहेजे रखा है। सबसे खास बात ये कि समाज के लोग धर्म परिवर्तन के खिलाफ होते हैं। श्री बजान ने बताया कि पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर लें तो उसे धर्म में रखा जा सकता है, लेकिन उनके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता। ठीक इसी तरह लड़कों के साथ भी होता है। लड़का किसी दूसरे समुदाय में शादी करता है तो उसे और उसके बच्चों को धर्म से जुड़ने की छूट है, लेकिन उनकी पत्नी को नहीं। समाज का कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे शहर या देश से यहां आता है तो उसके रहने और खाने की व्यवस्था पूर्ण आस्था और सेवाभाव से करते हैं।  समाज के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए कभी गलत राह नहीं पकड़ी। आज भी पारसी समाज बंधु अपने धर्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हैं। नववर्ष और अन्य पर्वों के अवसर पर लोग पारसी धर्मशाला में आकर पूजन करते हैं।  पारसी समुदाय धर्म परिवर्तन पर विश्वास नहीं रखते।

     यह सही है कि शहरों और गांवों में इस समाज के कम लोग ही रह गए हैं। खासकर युवा वर्ग ने करियर और पढ़ाई के सिलसिले में शहर छोड़कर बड़े शहरों की ओर रुख कर लिया है, लेकिन हां, कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो अपने पैरेंट्स की केयर करने आज भी शहर में रह रहे हैं। बजान के अनुसार हमारे भगवान प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्म दिवस 24 अगस्त को मनाया जाता है। नववर्ष पर खास कार्यक्रम नहीं हो पाते इस वजह से 24 अगस्त को पूजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। यह दिन भी हमारे पर्वों में सबसे खास होता है। उनके नाम के कारण ही हमें जरस्थ्रुटी कहा जाता है। पारसियों के लिए यह दिन सबसे बड़ा होता है। इस अवसर पर समाज के सभी लोग पारसी धर्मशाला में इकट्ठा होकर पूजन करते हैं। समाज में वैसे तो कई खास मौके होते हैं, जब सब आपस में मिलकर पूजन करने के साथ खुशियां भी बांटते हैं, लेकिन मुख्यतः तीन मौके साल में सबसे खास हैं। एक खौरदाद साल, प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस और तीसरा 31 मार्च। ईराक से कुछ सालों पहले आए अनुयायी 31 मार्च को भी नववर्ष मनाते हैं। नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में एक वर्ष 360 दिन का और शेष पांच दिन गाथा के लिए होते हैं। गाथा यानी अपने पूर्वजों को याद करने का दिन। साल खत्म होने के ठीक पांच दिन पहले से इसे मनाया जाता है।

                        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी जIनकारी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.08.2023-बुधवार.
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