गणेश चतुर्थी-कविता-25

Started by Atul Kaviraje, September 19, 2023, 05:21:05 PM

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Atul Kaviraje

                                       "गणेश चतुर्थी"
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मित्रो,

     आज दिनांक-१९.०९.२०२३-मंगळवार है. आज "गणेश चतुर्थी" है. भगवान गणेश को समर्पित पर्व गणेश चतुर्थी जल्द ही प्रारंभ होने वाला है। लोग इस दौरान घरों में बप्पा की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। चतुर्थी तिथि 18 सितंबर 2023 को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होगी और 19 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी। मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन, कवी-कवियित्रीयोको श्री गणेश चतुर्थी की बहोत सारी शुभकामनाये. आईए, पढते है गणेश चतुर्थी पर कविता. 

     गणेश चतुर्थी को गणेशोत्सव या विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है | ये पुरे भारत में काफी हर्सोल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है | इस दिन ज्यादातर हिन्दू गणेश जी की बड़ी बड़ी प्रतिमाये स्थापित करते है व् बड़ी धूम धाम से पूजा करते है | लेकिन सबसे ज्यादा लाल बाग के राजा (Lalbaugcha Raja-लालबागच्या राजाचा) की चर्चा होती है | इस बार भी लाल बाग के राजा को बड़े ही खूबसूरत तरीके से सजाया गया है. सोने के मुकुट के साथ वो शान से बैठे नजर आ रहे हैं | गणेशोत्सव की सबसे पहले स्थापना बालगंगाधर जी ने की थी जब भारत अंग्रेज़ो का गुलाम था | उस वक़्त बड़े बड़े पंडाल बनाये जाते थे और स्वतंत्रता की चर्चाये की जाती थी | आज में आपको "गणेश चतुर्थी पर कविता 2023 – Ganesh Chaturthi Par kavita in Hindi 2023" इस पोस्ट के माध्यम से गणेश चतुर्थी पर कविता साँझा कर रहा हूँ| जिन्हे आप अपने प्रियजनों के साथ व्हाट्सप्प और फेसबुक पर आसानी से शेयर कर सकते है |

            गणेश चतुर्थी पर कविता--

कितना रूप राग रंग
कुसुमित जीवन उमंग!
अर्ध्य सभ्य भी जग में
मिलती है प्रति पग में!

श्री गणपति का उत्सव,
नारी नर का मधुरव!
श्रद्धा विश्वास का
आशा उल्लास का
दृश्य एक अभिनव!
युवक नव युवती सुघर
नयनों से रहे निखर
हाव भाव सुरुचि चाव
स्वाभिमान अपनाव
संयम संभ्रम के कर!
कुसमय! विप्लव का डर!
आवे यदि जो अवसर
तो कोई हो तत्पर
कह सकेगा वचन प्रीत,
'मारो मत मृत्यु भीत,
पशु हैं रहते लड़कर!
मानव जीवन पुनीत,
मृत्यु नहीं हार जीत,
रहना सब को भू पर!'
कह सकेगा साहस भर
देह का नहीं यह रण,
मन का यह संघर्षण!
'आओ, स्थितियों से लड़ें
साथ साथ आगे बढ़ें
भेद मिटेंगे निश्वय
एक्य की होगी जय!
'जीवन का यह विकास,
आ रहे मनुज पास!
उठता उर से रव है,
एक हम मानव हैं
भिन्न हम दानव हैं!'

                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी कविता शIयरी.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.09.2023-मंगळवार.
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