काही गाणी आठवणीतली, काही साठवणीतली !-आकाशी झेप घे रे, पाखरा

Started by Atul Kaviraje, November 08, 2023, 09:27:26 PM

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Atul Kaviraje

                    "काही गाणी आठवणीतली, काही साठवणीतली !"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज ऐकुया, "काही गाणी आठवणीतली, काही साठवणीतली !" या गीत-मालिके -अंतर्गत, श्री सुधीर फडके यांनी गायिलेले एक गीत. या गीताचे शीर्षक आहे- "आकाशी झेप घे रे, पाखरा"

                             "आकाशी झेप घे रे, पाखरा"
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आकाशी झेप घे रे, पाखरा
सोडी सोन्याचा पिंजरा

तुजभवती वैभव, माया
फळ रसाळ मिळते खाया
सुखलोलुप झाली काया
हा कुठवर वेड्या, घेसी आसरा

घर कसले ही तर कारा
विषसमान मोती चारा
मोहाचे बंधन द्वारा
तुज आडवितो हा कैसा, उंबरा

तुज पंख दिले देवाने
कर विहार सामर्थ्याने
दरि, डोंगर, हिरवी राने
जा ओलांडुन या सरिता, सागरा

कष्टाविण फळ ना मिळते
तुज कळते, परि, ना वळते
हृदयात व्यथा ही जळते
का जीव बिचारा होई बावरा

घामातुन मोती फुलले
श्रमदेव घरी अवतरले
घर प्रसन्नतेने नटले
हा योग जीवनी आला, साजिरा

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गीत -जगदीश खेबूडकर
संगीत - सुधीर फडके
गायक - सुधीर फडके
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--प्रकाशक : शंतनू देव
(TUESDAY, DECEMBER 21, 2010)
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                  (साभार आणि सौजन्य-माणिक-मोती.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                             (संदर्भ-♫ गाणीमराठी.com ♫♪)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.11.2023-बुधवार.
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