$$$ परका $$$

Started by दिगंबर कोटकर, January 13, 2011, 04:45:25 PM

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दिगंबर कोटकर

$$$ परका $$$ 
चांदण भरल्या रात्री,  प्राक्तन हे खुलले, 
तुझ्यासवे जीवनी माझ्या,  अर्थ किती ग आले.....     

हाक माझ्या मनीची,  साद हुंकार तू दे, 
मनी तुझे नाव सखी,  मी कोरले ग होते.....     

स्मित तुझ्या हास्याने,  मनी काव्य हे फुले, 
तुझ्या दुराव्याने का ?  हे फुल कोमेजले....     

होते कोणते कारण,  अशी साथ तू सोडली, 
का ? निर्दयी मानाने तु,  काळी प्रेमाची तोडली......     

शब्द फुले जयांची,  बोल अमृत ग होते, 
काल माझ्या सवे सर्व,  आज दुर उभे होते.......     

कळी उमलता प्रेमाची,  मार्दव गंधाळला, 
मज पाहता सामोरे,  तु का? रस्ता बदलला......     

आप्तांमाधीच मी,  का? अनोळखी झालो, 
कालचा प्रिय मी ज्यांचा,  आज परका झालो.......!!!                                                ....दिगंबर....