श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा-

Started by Atul Kaviraje, December 04, 2024, 09:13:01 PM

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Atul Kaviraje

श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा-

श्री कृष्ण का जीवन विभिन्न घटनाओं और चमत्कारों से भरपूर था। उनकी एक अत्यंत प्रसिद्ध कथा है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाया और अपने भक्तों की रक्षा की। यह कथा न केवल श्री कृष्ण की महानता को दर्शाती है, बल्कि यह हमें विश्वास, भक्ति, और भगवान के प्रति समर्पण का भी सिखाती है।

गोवर्धन पर्वत का महत्व
गोवर्धन पर्वत वृन्दावन के निकट स्थित है और यह भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण स्थल है। पर्वत का धार्मिक महत्व इस कारण भी है कि यह स्थान कृष्ण की लीलाओं से गहरा संबंध रखता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा विशेष रूप से भगवान कृष्ण द्वारा इसे उठाने की घटना से जुड़ी हुई है।

कथा की शुरुआत
कथा के अनुसार, एक बार इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी। इन्द्रदेव का मानना था कि गोकुलवासियों को उनकी पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वे बारिश के देवता थे और उन्होंने गोकुल में वर्षा का नियंत्रण किया था। लेकिन गोकुलवासी और विशेष रूप से कृष्ण ने इन्द्रदेव की पूजा नहीं की। कृष्ण की समझ के अनुसार, कोई भी भगवान किसी स्थान विशेष से ऊपर नहीं होता, बल्कि वो सभी के साथ हैं। इसलिए, इन्द्रदेव के अहंकार को चोट पहुँचाने के कारण उन्होंने गोकुलवासियों को बचाने का निश्चय किया।

इन्द्रदेव का क्रोध और कृष्ण का प्रतिकार
इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों को दंड देने के लिए मूसलधार बारिश शुरू कर दी, ताकि वह उन्हें परेशान कर सकें और वे उसे पूजा करने के लिए मजबूर हों। बारिश का प्रकोप इतना अधिक था कि गोकुलवासी भयभीत हो गए और उन्होंने कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करते हुए, अपने छोटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठाया।

कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर पूरे गोकुलवासियों को उसकी छांव में सुरक्षित किया। पर्वत एक विशाल छत की तरह बन गया, जिससे गोकुलवासी बारिश से सुरक्षित रहे। कृष्ण ने इस कार्य से यह सिद्ध कर दिया कि भगवान अपनी भक्तों की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में साथ होते हैं।

इन्द्रदेव का पश्चाताप
जब इन्द्रदेव ने कृष्ण के इस अद्भुत कार्य को देखा, तो उनका गर्व और अहंकार टूट गया। वह यह समझ गए कि कृष्ण ही सच्चे भगवान हैं और उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। इन्द्रदेव ने अपनी गलती स्वीकार की और कृष्ण से माफी मांगी। कृष्ण ने उन्हें क्षमा कर दिया और साथ ही उन्हें यह भी समझाया कि भक्तों की पूजा में कोई अहंकार या गर्व नहीं होना चाहिए, क्योंकि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

श्री कृष्ण का संदेश
भक्ति का महत्व: श्री कृष्ण ने इस घटना से यह स्पष्ट कर दिया कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा से ही व्यक्ति को सच्ची सुरक्षा और शांति मिलती है। उन्होंने यह सिखाया कि कोई भी देवता तभी प्रभावशाली होता है, जब वह अपने भक्तों के साथ सच्चे प्रेम और समर्पण से जुड़ा होता है।

अहंकार का परित्याग: इन्द्रदेव की तरह, अहंकार और गर्व से भगवान की शक्ति का सम्मान नहीं किया जा सकता। भगवान के रास्ते पर चलने के लिए, हमें अपने अहंकार को त्यागना चाहिए और सच्चे मन से उनकी पूजा करनी चाहिए।

विश्वास और समर्पण: कृष्ण ने यह दिखाया कि किसी भी संकट में, यदि हम ईश्वर पर विश्वास रखते हैं और उनकी ओर पूरी श्रद्धा से बढ़ते हैं, तो वह हमें हर संकट से उबारने के लिए तैयार रहते हैं। कृष्ण ने यह सिद्ध कर दिया कि वह हमेशा अपने भक्तों के साथ हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

निष्कर्ष
श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा केवल एक चमत्कारिक घटना नहीं है, बल्कि यह जीवन के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को दर्शाती है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान हमारे साथ हैं, जब भी हमें उनकी जरूरत होती है। हमें बस उन्हें सच्चे मन से स्वीकार करना चाहिए और उनका विश्वास करना चाहिए।

गोवर्धन पर्वत उठाने की यह कथा, भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत शक्ति और उनके भक्तों के प्रति सच्ची श्रद्धा को दर्शाती है। यह भी दिखाती है कि भगवान अपने भक्तों को कभी भी अकेला नहीं छोड़ते, बल्कि हमेशा उनकी रक्षा करते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.12.2024-बुधवार. 
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