शुभ संध्याकाळ, शुभ शनिवार

Started by Atul Kaviraje, December 07, 2024, 10:04:08 PM

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Atul Kaviraje

शुभ संध्याकाळ, शुभ शनिवार.

"समुद्र के ऊपर सूर्यास्त"

सूरज की किरने धीरे-धीरे ढलने लगी,
समुद्र की लहरें शांत होकर खिलने लगी,
आसमान में रंगों की बगिया सजी,
सूर्यास्त का जादू हर दिल में रची।

लाल-नारंगी रंगों से भर गया आसमान,
समुद्र में जैसे हर लहर हो रही आनन्दित।
पानी की लहरें सूर्य के साथ खेल रही,
जैसे प्रकृति खुद अपने गीत गा रही।

चाँद के पहले आने की साजिश,
सूरज को धीरे-धीरे अस्त होने की बिझलिश,
समुद्र की गहराई में सूरज डूबता जाए,
दिल में चुपचाप एक ख्वाब सा समाए।

लहरों की आवाज़, एक शांत राग,
हर लहर में बसी, प्रकृति की साग।
सूरज की आखिरी किरण जब समेटती है रंग,
समुद्र की लहरों में, बसी हो एक नई उमंग।

यह नजारा न केवल आँखों को भाए,
रूह को भी सुकून और शांति दे जाए।
अंधेरे की चुप्पी में, जैसे एक सन्देश छुपा,
हर दिन का अंत, नए आरंभ का इशारा हो।

सूर्यास्त का हर पल एक कहानी कहे,
समुद्र और आकाश की प्रेम कथा यही रहे।
आगे बढ़ने के लिए हर रात को क़ुबूल करें,
नवीनता की ओर हर कदम हम बढ़ें।

समुद्र के ऊपर सूर्यास्त की ये छवि,
हमें बताती है कि जीवन कभी नहीं रुकता,
सूरज ढलता है, फिर भी एक नई सुबह आती है,
और हम उसी उम्मीद में हर दिन जीते हैं।

समुद्र के ऊपर सूर्यास्त का दृश्य,
एक ख्वाब, एक परिपूर्णता, एक सुकून सा सत्य,
यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर दिन,
सूरज के साथ हमारी अपनी नयी यात्रा शुरू होती है।

यह कविता समुद्र के ऊपर सूर्यास्त की सुंदरता को दर्शाती है, जहाँ प्राकृतिक सुंदरता और जीवन के उतार-चढ़ाव का प्रतीक है, और हमें हर दिन की नवीनीकरण की याद दिलाती है।

--अतुल परब
--दिनांक-07.12.2024-शनिवार.
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