"भोर में शांत पर्वत दृश्य"

Started by Atul Kaviraje, December 13, 2024, 08:46:50 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, शुक्रवार मुबारक हो

"भोर में शांत पर्वत दृश्य"

भोर की पहली किरणें छूने आया,
पर्वतों का सन्नाटा, चुपचाप खड़ा,
रात के अंधेरे को जैसे पराजित किया,
सूरज ने अपनी रौशनी से हर कोना भर दिया।

नदी की लहरें, धीमे-धीमे गाती हैं गीत,
पर्वत की ऊँचाई से गिरती हैं चुपके से बूँदें,
ठंडी हवा में घुली रहती है एक मीठी सादगी,
हर बूँद में बसी होती है पर्वत की लाजवाब छवि।

पर्वतों की वादियों में एक अद्भुत शांति है,
हर एक शिखर पर बसा एक असीम विश्वास है,
वो शिखर जैसे आसमान से बातें कर रहे हों,
सूरज की रौशनी को अपने भीतर समेट रहे हों।

पेड़ों की छाँव में चहचहाती हैं चिड़ियाँ,
धरती पर बिछे घास के गहनों में शबनम की बूँदें,
सूर्य की हल्की किरणों से जलती हैं हर पत्तियाँ,
पर्वत के दरख्तों में एक नया जीवन खिलता है।

भोर की मस्ती में लहराता है ठंडा वायू,
हर पत्ते और शाखा में छुपा एक राग नयापन का,
मधुर संगीत की ध्वनि घुलती जाती है आस-पास,
यह पर्वत, यह जंगल, यह आकाश—सब कुछ नए हैं।

भोर के पहले प्रकाश में पर्वत लहराते हैं,
जैसे धरती और आकाश का मिलन हो गया हो,
हर शिखर से झांकता सूरज एक नवा वादा करता है,
यह पल नया है, यह शुरुआत फिर से होती है।

चरणों में सौम्यता, मन में शांति का आलम है,
पर्वत का दृश्य जैसे जीवन का पहला अध्याय है,
दूर से गूँजती पहाड़ी नदियाँ बहती जाती हैं,
जैसे जीवन के हर कदम में एक नयी उम्मीद सीढ़ी चढ़ जाती है।

कभी शांति से खड़ा होता पर्वत हमें सिखाता है,
धैर्य और संतुलन की महत्ता का अहसास कराता है,
इसकी चुप्प, इसकी ऊँचाई, इसकी स्थिरता,
हमें बताती है कि जीवन भी कभी रुकता नहीं, बस बहता है।

पर्वत के बीचो-बीच बसी हर एक चुप,
समझाती है कि कोई भी यात्रा तभी सुंदर है,
जब हम उसे सच्चे मन से, शांतिपूर्वक जीते हैं,
और भोर की रोशनी में हर दिन नया सपना बनाते हैं।

     यह कविता भोर के समय में पर्वतों के शांत दृश्य को, उनके सुंदरता, शांति और जीवन के साथ उनके गहरे संबंधों को व्यक्त करती है। यह पर्वत हमें जीवन के संघर्षों में संतुलन और धैर्य की आवश्यकता को समझाता है, और भोर का समय एक नई शुरुआत और उम्मीद का प्रतीक बनता है।

--अतुल परब
--दिनांक-13.12.2024-शुक्रवार.
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