"एक शांत दोपहर के रास्ते पर साइकिलें"

Started by Atul Kaviraje, December 14, 2024, 08:32:19 PM

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Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, शनिवार मुबारक हो

"एक शांत दोपहर के रास्ते पर साइकिलें"

दोपहर का सूरज धीरे-धीरे मुस्काता,
सुनहरे रेशमी धागे सा हर पल लहराता,
हवा में घुली एक ठंडक की छाया,
मन को सुकून और शांति का भास देता आया।

सड़क पर फैली ख़ामोशी की चादर,
पेड़ों के पत्ते बहते, जैसे कोई मंत्र,
साइकिलों की आवाज़ सुनाई देती है दूर से,
धीरे-धीरे बढ़ती, एक अद्भुत नज़ारा सजती है ये।

रंग-बिरंगे टायरों की हौले-हौले घुड़कन,
मन में उठाती है आनंद की लहरें,
साइकिल की चेन की आवाज़ के साथ,
हर कदम पर समय जैसे रुक सा जाता है साथ।

एक बच्चा साइकिल चलाता, अपनी हंसी से,
खुशियाँ बिखेरता, हवा के संग गाता।
उसकी आँखों में सपना, उसकी आत्मा में जोश,
हर मोड़ पर वह खोज रहा है एक नयी राह, एक नयी बोश।

दूसरी साइकिल पर एक जोड़ी बैठी,
संग-संग चलती, बिन बोले एक सुर में बजी,
सर्दी और गर्मी के बीच का अंतर नहीं,
सिर्फ़ प्यार और सौम्यता की वाणी बही।

सड़कों पर लहराता हुआ हर पेड़,
साइकिलों के पीछे खड़ा, जैसे कोई साथी हो,
सभी चलते हैं अपनी राह पर, बिना जल्दी के,
जीवन के इन छोटे लम्हों में बसी है अनंत शांति।

धूप में चमकते चेहरों पर मुस्कान,
संग-संग साइकिलों में रंगते हैं शाम के जहान,
कभी रुकते हैं, तो कभी फिर चल पड़ते हैं,
दोपहर के शांत रास्ते पर साइकिलें लहराते हैं।

नदी किनारे की हवा, बर्फ के कण की तरह ठंडी,
साइकिलों के पहियों में जीवन की मिठास घुली,
हर साइकिल का रिदम, जैसे धड़कन का गीत हो,
सुर में सजे, शब्दों से बयाँ न होने वाला गीत हो।

आसपास की हर छोटी-सी चीज़,
साइकिलों के साथ जी रही है, अपनी मीठी सी लय,
एक अद्भुत साक्षात्कार, एक क्षणिक सौंदर्य,
जो महसूस कर रहा है हर कोई इस साइकिल सवारी में।

कुछ दूर पीछे सूरज अब मद्धम होने को है,
साइकिलें वहीं रुकती हैं, थककर सोने को है,
सिर पर हल्की सी थकान, दिल में प्रसन्नता,
हर रास्ते में बसी थी एक अद्भुत सुकून की व्यथा।

साइकिलें धीमे-धीमे चलती हैं, सूरज की किरण में,
सिर्फ़ समय को नहीं, बल्कि जीवन को भी,
हर मोड़, हर चक्कर, जीवन की कहानियों को खोलता है,
यह शांत दोपहर का रास्ता, आत्मा से दिल तक पहुँचता है।

हर साइकिल पर एक नयी कहानी बसी है,
हर चक्कर में एक नई उम्मीद की राह है,
दोपहर का ये शांत रास्ता सिखाता है हमें,
कि सच्चा आनंद और शांति बस धीमे चलने में ही है।

वो साइकिलें, जो समय को थामे, बिन बोले,
शांति से चलते हैं, उन पर विचार खोले,
मुझे यह एहसास हो जाता है फिर,
जीवन की असली खुशी छोटे-छोटे लम्हों में है।

--अतुल परब
--दिनांक-14.12.2024-शनिवार.
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