"सूर्य से चमकता वन पथ"

Started by Atul Kaviraje, December 15, 2024, 02:48:17 PM

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Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, रविवार मुबारक हो

"सूर्य से चमकता वन पथ"

सुबह की हल्की सी नमी, बिखरी चाँदनी में,
फिजाओं में बसी एक नई ताजगी की ध्वनि में,
पेड़ों की शाखों पर जैसे स्वप्नों की छाँव,
सूर्य की किरणों में बसा हर कण है भाव।

राह में बिछी पत्तियों की चुप्प,
संग उगते फूलों के गंध में बसी है एक लय,
हर कदम पर घुमते हैं शांति के गीत,
वन पथ पर चलते, मन में घटती सुखद वृष्टि।

सूर्य की किरणें हरे पत्तों पर छिटकती हैं,
जैसे सोने की रेखाएँ धरती पर सतरंगी बिखरती हैं,
स्मृतियों की राहें, अपने सपनों के संग,
हर घूंट में बसी है एक नयी तरंग।

बांस के झुरमुट में जैसे कोई रहस्य बसा हो,
वन में गूंजता सन्नाटा गहरी ताजगी से महका हो,
दूर-दूर तक फैली यह पगडंडी सी सरल,
कभी न रुकनेवाली, जैसे एक लंबा संगीत-ध्वनि।

गगन से छनकर आती बर्फ की हल्की हवा,
चरणों में बसी हर ध्वनि में जीवन का अलहदा झंकार,
एक सुंदर शांति जो केवल सृजन में बसी है,
हर पत्ते पर बसी एक मीठी मुस्कान, वह जीवन की असली खुशी है।

पेड़ों की उँची शाखों से झूलते पक्षी,
धरती पर उतरते, गाते कोई पुरानी गाथा।
हर दिशा में हर ध्वनि में एकता की मिठास,
जैसे प्रेम और संगीत की हो एक अटूट श्रृंगार-रास।

वन पथ पर कदम बढ़ते हैं धीरे-धीरे,
संग-संग हर आवाज़ मिलती हैं मृदु स्वर में,
धूप की किरणें अविरत बढ़ती जाती हैं,
और हम उन रेशमी रास्तों पर ढलते जाते हैं।

सड़क किनारे ठंडी हवाएँ ले आतीं हैं,
धूप और छाँव में वो संजीवनी सी बसीं हैं,
राह में हसते छोटे फूल, मृदुल और कोमल,
वे भी जोड़ते हैं हर कदम में नयी ममता का काव्य।

जंगल की रानी, यह शांत चुप्प,
हर वृक्ष की छाँव में एक संसार बसा,
जहाँ हर अनुभव, हर क्षण खुद में जीवित होता है,
सूर्य से चमकता वन पथ हमें अपने भीतर झांकने सिखाता है।

आगे की राह भी सुंदर और अद्वितीय,
धूप और छाँव की लहरों में हर पल विशेष,
वह राह जो कभी खत्म नहीं होती,
कभी भी खत्म न हो, यहीं बसा हुआ है जीवन का सच।

इस पथ पर हर मनुष्य एक यात्री हो,
जो हर कदम में खो जाता है, खुद को पहचानता है,
और फिर वन पथ की ठंडी हवा में मिलता है शांति,
जहाँ समय भी ठहर जाता है, और जीवन होता है नयापन और शांति।

सूर्य से चमकता, हर एक पत्ते पर बसी जीवन की छाँव,
वन पथ पर चलने से मन शुद्ध हो जाता है, आत्मा निखरती है,
इस पथ पर चलकर हम सीखते हैं अपने आप को और अपना अस्तित्व,
यह पथ हमें जीवन की राह पर निरंतर जागरूक और संवेदनशील बनाए रखता है।

जब तक यह पथ हमें छोड़कर न जाए,
तब तक हम जीवन के हर कोण में शांति पाए,
वहाँ दूर तक फैली हुई रेशमी लकीरें,
वन पथ की उस अनन्त यात्रा की आवाज़ हमारे भीतर गूंजती रहे।

--अतुल परब
--दिनांक-15.12.2024-रविवार.
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