"जंगल में झोपड़ी, जिसमें से सूरज की रोशनी अंदर आ रही है"

Started by Atul Kaviraje, December 17, 2024, 09:42:45 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, मंगलवार मुबारक हो

"जंगल में झोपड़ी, जिसमें से सूरज की रोशनी अंदर आ रही है"

गहरे जंगल में छुपी एक छोटी सी झोपड़ी,
जहाँ चिरपिंग बर्ड्स की आवाज़ होती है चुपड़ी,
पेड़ों की छांव में बसी एक अलौकिक शांति,
जहाँ सूरज की किरणें आती हैं रेशमी चाँदनी।

झोपड़ी की दीवारें बंजर और बेमिट्टी नहीं,
संगमरमर की खामोशी से न दिखतीं कहीं,
मगर हर लकड़ी, हर पाटी, हर छतनार छांव,
सुगंधित हवाओं में एक सुखद एहसास लातीं।

सुबह का सूरज आकर झोपड़ी में बसा,
धीरे-धीरे सोने जैसा आलोक फैला,
सूरज की किरणें जब दरवाजे से आतीं,
पानी की बूंदें जैसे स्वर्ण में बदल जातीं।

पत्तों के बीच से छनकर आती रोशनी,
चमकते हुए फूलों की छांव में बसी,
हर झुरमुट में जैसे सीन कटा सा होता,
आंखों में सपने और मन में रचनाएँ खिलतीं।

तलवों में धरती की कोमल छांव बिछी,
झोपड़ी में हर दीवार गुनगुनाती,
सूरज की पहली किरण जैसी ये धारा,
हमें बताती है जीवन की नयी सवारी।

गेंद की तरह उगते सूरज के प्रकाश,
संग नृत्य करतीं शाखाएं झूम-झूम कर,
अंधेरे में सासें, शांति से सजी,
रात की चुप्प में जि़ंदगी फिर से मिली।

झोपड़ी के खिड़की से फैलते उजाले,
प्राकृतिक सौंदर्य से भरे हर एक हालें,
इन्हीं गर्म रौशनी में विश्राम पाते हैं,
सूरज के किरणें सीने से टकराते हैं।

सांसों में महकती मिट्टी की खुशबू,
रुक-रुक कर बूँदों का पानी बरसता,
साथ मिलकर छायाओं का रास्ता बनाता,
तलवों में, हाथों में एक शांति भर जाता।

आकाश से सूरज की सौम्य रौशनी की कहानी,
सावधानी से छुपतीं शाखाओं के निशानी,
हर रेखा और हर रेशा एक प्रेम गाथा,
जो हमसे कहती, दुनिया नहीं है खाली, हमसे बाकी है ज़िंदगी।

सूरज की किरणें एक राहत का संकेत हैं,
हर तरफ फैलता प्रेम तो सुखद खजाना,
इन झोपड़ी की आँगन में बसी एक ताजगी,
मौन में छुपे हैं शब्द और मधुर सुगंधी तानें।

घेराव करती हवा, जैसे कोई दोस्त हो,
अंधेरे से उभरते हर सुंदर रंग,
स्वप्नों में वो रंग भरते जाते हैं,
सूरज की किरणों से प्रकट होती नयी राहें।

छोटी सी झोपड़ी, प्रकृति से सजी,
सूरज के आलोक में नयी उमंग की छांव,
इसमें सब कुछ सरल, सब कुछ शांत,
जंगल में बसी हुई एक अधूरी परिपूर्णता की राह।

हर सुबह, हर शाम, हर लम्हा यहाँ,
सूरज की किरणों में एक नयी कहानी बसी,
झोपड़ी के भीतर, बस आनंद है और स्वप्न,
यह जीवन की यात्रा, अनमोल और अद्भुत है, बिना किसी थकान के।

--अतुल परब
--दिनांक-17.12.2024-मंगळवार.
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