"शाम को स्ट्रीटलाइट जलती है"

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2024, 09:17:30 PM

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Atul Kaviraje

शुभ संध्या, शुक्रवार मुबारक हो

"शाम को स्ट्रीटलाइट जलती है"

शाम की नर्म सर्द हवा में,
चाँद के बिना चाँदनी सहमी सी,
धरती पर बिखरी सोने जैसी रौशनी,
स्ट्रीटलाइट जलती है, जैसे जीवन में एक नई कहानी।

सूरज की किरने धीरे-धीरे ढलने लगती है,
सपनों के रंग आसमान में घुलने लगते हैं,
वहीं पर, गली के हर मोड़ पर,
स्ट्रीटलाइट जलती है, एक चुपचाप हलचल में।

हर एक दीपक, जैसे एक राज़ छुपाए,
हर लपट के साथ कुछ अनकहा सा छिपाए,
ये रोशनी, न देखी जाने वाली नज़रों को दिखाती है,
दूर से आते अजनबी राहों को बताती है।

वह दीपक, जो बेज़ुबान होकर भी बहुत कुछ कहता है,
वह कभी नहीं थमता, कभी नहीं रुकता,
हर कदम पर हमें दिशा देता है,
आंधी, तूफान के बाद भी, यह रोशनी हमारी सवारी करता है।

शाम के अंधकार में, जब सब कुछ शांत हो जाता है,
ये स्ट्रीटलाइट हमारे अकेलेपन को सहारा देती है,
हर पल के बीच, एक ठहराव सा आता है,
जैसे यह बत्तियाँ हमें कुछ नया सिखाती हैं।

गाड़ी के इंजन की आवाज़ें धीमी होती जाती हैं,
सड़कें और गालियाँ सुनसान होने लगती हैं,
लेकिन स्ट्रीटलाइट का उजाला,
उन्हें जिंदगी का एहसास कराता है, जैसे कोई गुम हुआ साथी वापस आता है।

ये स्ट्रीटलाइट हमें बताती है,
कि अंधेरे के बाद हमेशा उजाला आता है,
जितना गहरा अंधेरा होता है, उतनी तेज़ रौशनी का होना तय है,
यह हर मोड़ पर एक उम्मीद, एक सपना जगाती है।

गली में आते-जाते लोग इनकी रौशनी में चलते हैं,
कभी भीड़, कभी अकेलापन, सब कुछ इनमें समा जाता है,
हर चेहरे की कहानी इनमें बसी होती है,
हर क़दम, हर रास्ता इनकी रौशनी में नया होता है।

रात भर ये जलती रहती हैं,
और अपने छोटे-छोटे आंसू, अपनी गीली चमक छोड़ जाती हैं,
वह रौशनी कभी बुझती नहीं,
यह हमें अंधेरे से डरने नहीं, बल्कि उसे पार करने की ताकत देती है।

शाम को स्ट्रीटलाइट जलती है,
और एक नयी सुबह का अहसास देती है,
यह रौशनी हमें बताती है कि अंधेरे में भी उम्मीद होती है,
सिर्फ हमें विश्वास रखना होता है कि सुबह फिर से आएगी।

--अतुल परब
--दिनांक-20.12.2024-शुक्रवार.
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